"खुशियां" हमेशा बांटने से बढ़ती है जैसे कि
एक जलते हुए "दीये" से.......
हज़ारों दीपक "रोशन" किए जा सकते है, फिर भी उस "दीये" की "रोशनी" कम नहीं होती....!!
✷ गौतम बुद्ध ✷-
मन बावरा,
प्रभु ढूंढे तुझे सांवरा,
कोई न समझ पाया गौतम,
तिलिस्म इस जीवन का,
मन की गति,
सिर्फ है इक़ दुर्गति,
भोला मन तू क्यूँ समझे ना।
शून्य दृष्टि ,
वहम है मन की तृप्ति,
प्रेम तो बस इक़ छल ,
भावुक मन ,
खुद को ही गया छल।
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खुद के खूं से दिया दिवाना कोई जलाता है रोज़
जाने क्यों अपने जनाजे में जश्न परवाना कोई मनाता है रोज़-
किमती कोहिनूर कोई कहकशां तकदीर चाहता है
"गौतम" अपनी गज़ल में ग़ालिब सा तासीर चाहता है-
Dwa kya btaye aakhir drd kya h....
Tasveer se bate krte ho to isme marz kya h....
Suno chlo Mana ki nhi h gajal apni ...
Mgr dost kambkhat pdhne me harz kya h....😉-
खुद - ब - खुद खूं रीसने लगता है जख़्मों से मिरी
जब जब यादों की हवा हमें छू जाती है तिरी-
खुद के खून से अश्क़ मिला के कलम चलाता है कोई दीवाना हर रोज
जाने क्यों अपने ज़नाज़े में बड़ा ही जश्न परवाना मनाता है कोई रोज़
इश्क़ के समर्पण भाव को, छद्म को जानकर भी दीवाना निभाता है रोज
यहीं उन्नत भाव से टिका है इश्क आज, जो निभाता है वो परवाना हर रोज-
कुचलता क्यों नहीं अपने जज्बातों को
तुम्हें अभी औरों के खाब पूरे करने है..!!-