🙏🙏 मृत्युभोज🙏🙏
पति के चिर वियोग में, व्याकुल युवती रोती ।
बड़े चाव से पंगत खाते, तुम्हें पीड़ा क्यों नहीं होती ।।
चला गया संसार छोड़कर, जिनका पालनहारा ।
बड़ा चेतनाहीन जहां पर, वज्रपात दे मारा ।।
मरने वालों के प्रति, अपना व्यवहार निभावों ।
धर्म यहीं कहता है, सज्जनों मृत्युभोज मत खाओ ।।
खुद भूखे रहकर भी परिजन, तेरहवां तुम्हें खिलाते ।
अंधी परम्परा के पीछे, जीते जी मर जाते ।।
मरने वाला कभी नहीं आता, तुम करना छोड़ों ढ़ोंग ।
नुक्ता प्रथा कुरीति सज्जनों, बहुत बहुत यह रोग ।।
जीते जागते माता-पिता की, सेवा कर दिखलावों
धर्म यहीं कहता है, सज्जनों..................….।।
इस कुरीति के उन्मूलन का साहस कर दिखलावों ।
धर्म यहीं कहता हैं, सज्जनों मृत्युभोज मत खाओं ।।
-"बी.जी.कसाणा"
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