वो न हो कर भी, आज भी मुझ पर हक़ जताती है,
वो न हो कर भी, आज भी मुझको सताती है।
वो, वो थी जिसके सताने में भी मज़ा था,
वो, वो थी जिसको सताने में भी मज़ा था।
वो, वो थी जिससे घर में रौनक़ थी,
वो, वो थी जिससे घर में खुशियाँ थी।
नहीं है वो आज तो, ख़लती है मुझे कमी उसकी,
नहीं है वो आज तो, आती है मुझे याद उसकी।
महीनों से बंद उसके कमरे में, ख़ुशबू आज भी क़ैद है उसकी।
काश किसी तरह उसे बता पाता, याद बहुत मुझे आती है उसकी।
उसके लौट कर आने की तो, नहीं है अब कोई आस,
फिर भी लगता है मानो, है वो यहीं कहीं आस पास।
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