ख़ैर खुद्दारी की सारी हदें
पार की थी तुमने।
तुम्हारा वो इतनी बदसलूकी से ठुकराना ...
आज भी याद है मुझे।-
कोई आता है दुआओं में मेरी ख़ैर बन के,
आजकल मिलता है मुझसे वो ग़ैर बन के।
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ख़ैर ग़ुबार रोने का ये आँखें ज़रिया हैं
नहीं-नहीं जनाब आँखों में दो दरिया हैं-
अगर आप किसी के बगैर खुश नहीं रह सकते तो उसको इस बात का एहसास दिलाने से बचें
(अनुशीर्षक में जानिए)-
बहुत अपना सा है तुम्हारा ग़ैर हो जाना,
ज़ुबां तक बात का आना 'ख़ैर' हो जाना।-
हुस्न वालों पे कहाँ किसी की रोक लगती है
ख़ैर-ख़बर भी पूछो तो उन्हें टोक लगती है-
खैर मखदम है तेरा मेरी जिन्दगी में जाना
फूल खिल जाएंगे बाद एक मुद्दत के इधर भी जाना
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सब अपने हैं यहाँ
कोई तो ख़ैर करे,
बहुत हो गए अपने
कोई तो ग़ैर करे,
हर मर्ज़ को उम्मीद है हमीं से
कोई तो कुछ बग़ैर करे,
अरसे से क़ैद में हैं अपनी क़ब्र के
कोई दर खोले तो सैर करें।-
" कुछ ख्याल आया तो तुझे उस अंदाज़ से लिखगे ,
ख़ैर अब बात करु तो तेरी कौन सी बात करु ,
मेरे लहजे में तेरा कुछ अंदाज़ छुपाये बैठे हैं ,
फिलहाल करें तो तेरी कौन सी बात करें . "
--- रबिन्द्र राम-