घंटे के शब्द में बसता-सा
ख़ुदा ही तो है,
अज़ाँ में गुनगुनाई है
गोविंद की मुरली कहीं...
कानों की जिरह छोड़िए!
दिल से ज़रा सुन लीजिए!-
थोड़ा प्यार दिल में जग जाने दो,
थोड़ी वो बातें भी हो जाने दो,
हैं दर्द इतना कि जिस्म टूट जाएं,
तेरी मोहब्बत के परवाने को
तेरा ख़ुदा तो बन जाने दो |-
दिनों से बात लब पे है के अब वो बोल दी जाए,
पड़ी नफ़रत की ये बेड़ी दिलों से खोल दी जाए,
लहू कुछ गर्म है उनका के उनकी ज़ात ऊँची है,
लहू में आओ अब सबके मुहब्बत घोल दी जाए।
कई ऐसे हैं दुनिया में जो दुनिया के सताए हैं,
इनायत ऐसे लोगों को ग़मों के मोल दी जाए।
नमाज़ों से कहीं प्यारी है ख़िदमत-ख़ल्क़ मौला को,
अगर दिल के तराज़ू में, इबादत तोल दी जाए।-
ख़ुदा को क्यूं मैं अपनी ज़िन्दगी की
परेशानियों से उलझाऊ ,
बेहतर होगा मैं अपने टूटे दिल का
एक खूबसूरत सा तोहफ़ा बनाकर
उसे उसके स्वर्ग में पहुंचाऊं |
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इंसान को इंसान में इंसानियत नहीं दिखती
पत्थर में ख़ुदा ढूंढ़ते हैं ,
हैं ज़िन्दा ख़ुद भी यहां
फिर भी ज़िन्दा होने की वजह ढूंढ़ते हैं |
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दुखी है वो अब मुस्कुराए भी कैसे
ये आँसू किसी को दिखाए भी कैसे
मुक़द्दस नहीं है मोहब्बत किसी को
वो सपने सुहाने सजाए भी कैसे
गुज़ारिश करे किस के पीछे पड़े
ख़ुदा को वो अर्ज़ी लगाए भी कैसे
ये इमरोज़ आकर बना है दीवाना
गुज़ारे पलों को भुलाए भी कैसे
मुकम्मल कहानी हुई ही कहाँ थी
अधूरी कहानी सुनाए भी कैसे
हसीनों की आदत से पुरनूर होकर
हसीनो को दिल में बिठाए भी कैसे
जो 'आरिफ़' का होकर भी उसका नहीं है
उसे पास अब वो बुलाए भी कैसे-
इश्क़ मुझे , ये किस मोड़ पर लाया हैं
सामने मेरे , ये कैसी माया हैं |
चाह कर भी , मैं लौट ना पाऊ
लगता हैं कि ख़ुदा ने , सिर्फ़ एक ही रास्ता बनाया हैं |
इश्क़ में दर्द भी मैंने , गहरा पाया हैं
सामने से चल कर , कोई कुछ कहने आया हैं |
ना करूंगा इजहार , इश्क़ - ऐ - मोहब्बत का
क्योंकि मात भी मैंने एक नही , कई बार खाया हैं |
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मंजिलों ने छोड़ा , हादसों ने अपनाया
ऐ ज़िन्दगी , रास्तों ने ये किस मोड़ पर हैं लाया |
लोग तो ऐसे बदले , जैसे अंधेरों में उजाले का साया
अजनबी हो गए सारे सपने , इस टूटे दिल को हंसाने
ख़ुदा एक बार फिर , बहरूपिया बन मेरी ज़िन्दगी में आया |
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ये कुदरत की कारीगरी है या ख़ुदा की इनायत,
रंग सोने सा है मेरी मेहनत का और हाथ मैले हैं !-
ना वो दुजा हैं , ना कोई तिजा
अपने अंदर रख रख कर , मैंने उसे हैं पूजा |
ना वो दिन हैं , ना कोई रात
बिन बादलों के बरस दे , वो हैं ऐसी बरसात |
ना वो कोई आग हैं , ना प्यार से भर जाए घाव हैं
मौत को भी मात दे दे , वो एक ऐसी छांव हैं|
वक़्त को लेकर चलता हैं , ना रंग कभी बदलता हैं
दिल हैं मेरा , पर ख़ुदा के नाम से धड़कता हैं |
Sahani baleshwar
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