कहता है दुसरों को ख़ुदगर्ज....
अरे! तु ख़ुद से कितना मिलता है?-
विरह जुदाई के सहुॅं कैसे
तेरे बिन अब मैं रहूॅं कैसे
हर रात गुजर रही मेरी तन्हाई में
ज़िंदगी गुजर रही ख़ुद से रुसवाई में-
मिलता तो खुद से भी नहीं हूं आजकल ...
दूसरों से मिले तो जमाना हो गया ।।-
//कृष्ण जन्मोत्सव//
अगर आप चाहे तो बड़ी आसानी से ये खेल छोड़ सकते हो,
जैसे एक साधारण इंसान स्वप्न को नहीं छोड़ सकता,
संसार को नही छोड़ सकता,
जब तक वह जानता नही कि वास्तव में क्या छोड़ने योग्य है,
कुछ भी तो नहीं, ज्ञान के सिवा,
"न ही ज्ञाननेन सद्रशम पवित्रमिहः विद्धयते",
कुछ भी नही त्याग करना ही सर्वश्रेष्ठ त्याग है,
और जो क्षमता है वही ज्ञान है,
क्योंकि त्यागा हुआ राज राजा के काम का नही,
जो क्षमता है वह गौरवप्रद है,
राम ने त्याग दिया, कृष्ण ने त्याग दिया,
"त्यागात शांति अनंतरम" वह ज्ञान है,
कृष्ण गीता द्वारा जो भी कह रहे है, वह पवित्र है,
हां कृष्ण अर्जुन से कह रहे है कि तू फल का त्याग कर,
सामने खड़े तेरे ही स्वजन का त्याग कर, केवल युद्ध में रत हो जा,
यह अमृत है, और तू इसका पान कर,
विष रूपी युद्ध को गले से लगाकर तू नीलकंठ हो जा,
ममत्व को जान अर्जुन,
यह अमृत है पर तू विष की भांति धारण कर,
क्योंकि वह भी मेरा ही अंश है,
यह ब्रह्मांड मेरी एक उंगली के ऊपर स्थित है,
जैसे स्वप्न से जुड़ा इंसान, उठते ही समाप्त हो जाता है, उसी भांति नाश होगा,
हे ऋषि! उस त्याग का कोई अर्थ नहीं जो जाना योग्य न हो,
वही ज्ञान है, जैसे मृत्यु जीवन को विश्राम दे रही है, वह जानने योग्य है...
#रूषि #खुदसे बातें... #4230 #-
ख़ुद से मोहब्बत करते हुए तुम याद-ए-ख़ुदा करो
जो छोड़ दें ख़ुदगर्ज़ी में उनको ख़ुद से जुदा करो
----राजीव नयन-