इश्क़ था वो मानो कोई
कारोबार हो जैसे,
हमने किया और बाजार
हो बैठे !!!
किशमिश...-
छोड़ चुकिहुँ मैं मौत का कारोबार करना
इसीलिये इश्क़ से दूर रहतिहुँ।
खोने को कुछ और बचा नहीं
इसीलिए शायद ख़ुश रहतिहुँ।
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छोड़कर दिल्लगी उसने कारोबार शुरु कर दी
लगता है आज ये आशिक़ समझदार हो गया-
वो आँसू खर्च हो जाते हैं तेरी याद में
कितना महँगा हो चला है प्यार तेरा-
चलो इश्क़ का कारोबार करते हैं
नगद न हो तो उधार करते हैं
हो जाये जो भूल चूक बही खाते में
लाल कलम से सुधार करते हैं-
आजकल रिश्ते दम तोड़ देतें हैं,,
बुरे वक़्त के आने में,
कुछ तो जहर घोल देते हैं,,
एक वक़्त के भी बचे खाने में,
ऊंची इमारतों में रहते हैं जो लोग,
गरीब को दफनकर,
नीचे तहखाने में।
हमदर्द बनते हैं वो लोग,
रहकर शोहरतों के शहर में,
दर्द का कारोबार निकलता है,
उनके ही ठिकाने में।।।।
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इंसान अत्यंत सुख की चाहत में,सारी सीमाएं लांघ बैठा
धन कमाने की होड़ में,लाशों का भी कारोबार कर बैठा-
सोचिए अंजाम ऐसा क्यों हुआ?
ये शहर वीरान जैसा क्यों हुआ?
आज कुदरत ढा रही है यूँ कहर,
बेरहम इंसान ऐसा क्यों हुआ.?
जानवर में आ गयी संवेदना,
आदमी बदनाम ऐसा क्यों हुआ?
घुल गए हैं ज़िंदगी में हादसे,
ख़त्म है ईमान ऐसा क्यों हुआ?
सज गयी हैं हसरतों की मंडीयां,
बिक रहा इंसान ऐसा क्यों हुआ?
दर्द कारोबार है इस दौर का,
हर कोई नीलाम ऐसा क्यों हुआ?
स्वतंत्र दुनिया जी रही है मौज में,
मतलबी आवाम, ऐसा क्यों हुआ?
सिद्धार्थ मिश्र
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