"ये बिस्तर की "सिलवटे"भी अजीब है।"
"रात का "इश्क़" बयाँ कर जाती है।"
-
लज्जापट के स्वर्णिम पट पर,चंद्रहास के स्वप्न सितारे।
मंद्र मुखी मणिका मदमाती,पट पीछे दो पट कजरारे।
श्वेतभंगपाटलवर्णी कच घनीभूत कंचन बरसाते।
पुष्पित शिखा चढ़ी भुजमूल,मुदित मेघ मधुकर हो जाते।
वीरों के जो वीर हुए वे हृदहरणी की पट से हारे।
त्रिभुवन की भावी पटरानी,कोटिक ही 'ऋतिका' सी दासी।
मदांध सुरासुर,मनुज समस्त,जगती के सुत भोग विलासी।
और कहें क्या पंचभूत,वह चलती तो चल पड़ते सारे।
धरणी तेरे तीन तनय और तीनों कामुकता के मारे।-
उसने नहीं कहा मुझे जिस्म ढकने को
न ही उसने अपनी नज़र हटाई।
ये उसकी कामुकता नहीं
ये था उसका प्रकृति प्रेम।
प्रकृति सिर्फ पहाड़ों और
जंगलों में नहीं बसती।-
"वो मीठ -मीठे से होंठ।
मादक सा झुलफो का साया।
आँखों से रिसता वो काजल।
सुर्ख लाल पड़े हुए गाल।
चाँद की हल्की -हल्की सी रोशनी में।
तेरे "इश्क़" को "नमकीन" बनाए जा रही थी"।
-
हद से ज्यादा है कामुकता
सिसकियां निकलती आहें भी,
चेहरे पर झलके प्यास बहुत हैं
झुकी झुकी सी निगाहें भी...
आगे कैप्शन में पढ़े...
-
"कुछ तो बात थी उन में?"
"चंद मुलाकातों में"...
"कोई यूँही ही नही" ....
"महकता" रात के खयालातों में".....
-
एक गन्दा सा लड़का हूं
जो सिर्फ कामुकता के बारे में ही लिखता हूं
पर एक बार मुझसे दोस्ती तो करो
फिर कहने में कैसा हूं-