अनंत प्रेम को पाने को,
मैं कुछ हो जाऊं...
लेकिन तुम शून्य हो जाना।
खुद से मुझको बाँटकर।
सहज प्रेम अनंत कर जाना....।-
Sarcasm Lover.
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सहज प्रेम को पाने के लिए,उस "मैं" को खोना ही पड़ता है।
अनंत हो जाने से पहले ,इक बार तो "शून्य" हो नाही पड़ता है।
आडम्बर तुम रच लो ज्ञानी हो जाने का ।
प्रेम तो सरल भाव है,मन के सागर में खो जाने का।
ह्रदय भरा था आभासी बातो से।
प्रेम का रस भरने को तो, मन के प्याले को खाली होना ही पड़ता है।-
लोगो ने तो रंगों को भी "मजहबी" बना दिया।
हर "मुसलमा" को "हरा" तो...
"भगवा" को "हिन्दू" बना दिया।
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वो एक आदत नही जाती।
जिस आदत का पोषक।
आपकी रोज़मर्रा की तमाम छोटी-छोटी आदतें है।-
और अचानक अापको लगता है कि,
बेहतर बनना आप नही चाहते।
आप बस शांत बैठना चाहते है।
बगैर किसी फ़िक्र के।
जैसे आप हर चीज़ से संतुष्ट होना चाहते हो।
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जिसे तुम प्रेम समझती थी।
कवितायों में,
वो प्रेम नही।
बस भाषाओं की,
छोटी सी भूल है।
शब्दो मे अगर प्रेम पनपा होता तो,
संसार की सारी समस्याएं
बस भाषा की समस्या नही होती।
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तेरी बाते सुनकर इतना ही गुमां होता है।
मर जाऊं या जीने के और बहाने ढूंढ लूँ।-