तुम्हारी वो कलम
तुम्हारी वो कलम तुमसे जो उधार ली थी मैंने
फिर कभी जो लौटाई थी न मैंने
आज तुम्हारी उस कलम से ही कितने पन्ने रंगीन किए है मैंने
उस काली स्याही से कितने कोर कागज़ भरे है मैंने
कई शेर,कई नज़्म तुम्हारे नाम करे है मैंने
वैसे हूं तो लापरवाह मैं
चीज़े गुम कर देता हूं
न जाने कैसे पर अब भी
तुम्हारी उस कलम को जेब में रख
दिल से लगाए रखा है मैंने
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