ख़ुशबू के दोहे:
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नाम को पहचान मिली, मिला ऐश आराम ।
नशा बुलंदी का चढ़ा, भ्रष्ट हुए फिर काम ।।
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मेल कराती कुंडली, मन का मिले न मेल।
तनिक समय तो दीजिए, ब्याह नहीं है खेल।।
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अक्सर छल करते वही, रखते मन में बैर।
ख़ुशबू कड़वा सच कहे, चाहे सबकी ख़ैर।।
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झूठ कपट की आड़ में, जन्म न कर बेकार।
सच का दामन थाम कर, निकल बदल संसार।।
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