रोज शिकार करता है ये शिकारी
कलयुग का रावण जो हवस का पुजारी।
आखिर कब होंगी महिलाएँ सुरक्षित सारी
मासूम ज़िंदगियों की बर्बादी है जारी।-
इतिहास की 'इति' का साक्ष्य
भले यह शब्द लगे कटाक्ष....
रावण-राम की चारित्र कथाओं ने
रची भले ही रामायण
विस्मृत नहीं हो सकेगा कथानक
दशानन तो एक ही था
राम भी बस एक..........
अब मर्यादा का बाँध टूटा
'अति' होती पाप की बाढ़ में
मनु 'यति',सति और रति की क्षति
आपूर्ति कौन करे?
अनगिन रावण का दहन कौन सा राम करे?
पुल साधे कौन?वानर भक्त कौन बनें?
25.10.200-
परिभाषा-ए-इंसान-ओ-हैवान नाखुदा कर्मों से है,
परिभाषा-ए-कर्म पूरी तरह से सोच पर निर्भर है,
लगा दे गर आईना-ए-सोच ये खतरा-ए-रिश्ता है,
छुपा हुआ होता तसव्वुर गर मुट्ठी बंद कर रखी है,
कलयुग के रावण को, कर कुर्बान, गर है इंसान,
मन-ए-हैवान मार दे पर्दा-ए-इज्ज़त उठ जाते है।-
कलयुग का रावण बनकर
मानवता को नोच रहे
कहीं कोई राम बनकर आ
जाए यह न दरिंदे सोंच रहे
कर्मों से विचलित होकर
जरा भी न संकोच रहे-
नहीं कहती कलयुग का रावण, हुआ त्रेतायुग में सीता का अपहरण,
हर युग में औरत रौंदी जाती, राक्षस होता हर काल का अपराधी,
द्रोपदी का भी चीरहरण था, अस्मिता लूटी सरे आम थी उसकी,
कलयुग का बखान ना करना, रावण तो हर युगों का आदी।।
- पूजा गौतम
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कलयुगी रावनों की रावन से तुलना रावन का अपमान
रुह भी चित्कार उठे ऐसा कृत्य कर रहा है इंसान
बहन बेटियों को नोच रहा चील गिद्धों के समान
सारी हदें पार कर चुका इंसान रुपी शैतान
मासूम पर अत्याचार कर ख़ुद पर करता अभिमान
मानव कर्मों से भगवान भी हो रहा होगा हैरान-
बचपन में सीखने के दौर में न जाने कब चुपके से प्रवेश करता है, माँ बाप के प्यार में फलता फूलता है। यौवन के साथ पहली बार दस्तक देता है, समाज में बदनाम कर सबको शर्मिंदा करता है।
सही मार्गदर्शन से खुदके अंदर पल रहे रावण का संहार करना है हर दिन दीपावली माना कर खुद के अंदर पनपे बुरे विचारो का विनाश करना है। क्योंकि ये कलयुग का रावण ये हर जन में पलता है।
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'कलयुग का रावण' सरेआम इंसानी जिस्म लिए दरबदर बेखौफ फिर रहा हैं,
यह तो दशानन और दुःशासन जैसे अत्याचारियों को भी शर्मसार कर रहा हैं।
मानवता का मुखौटा पहन कर नारीत्व की मर्यादा को तार-तार कर रहा हैं,
त्रेता युग के राम की अनुपस्थिति मे ये कलयुगी रावण सब को छल रहा हैं।
भूखे भेड़ियों का ये विस्तृत झुंड सकल नारी समाज को 'निर्भया' बना रहा हैं,
फिर भी यह जालिम,निर्दयी समाज औरत मे ही दोषो को खंगाल रहा हैं।-