हम कर्मचारी हैं,तो क्या हमारी,कीमते जान नहीं है
हुजूर,इंसान है हम,कोई उपभोग का सामान नहीं है
चलो माना मिलती है पगार,मगर काम भी करते हैं
सुबह ही नहीं,नाम आपके,अपनी शाम भी करते हैं
फिर क्यों कर,आखिर हमारा,कोई सम्मान नहीं है
हुजूर,इंसान है हम,कोई उपभोग का सामान नहीं है
हुकुम आपका,हो नाजायज,तो भी पड़ता है मानना
कई मर्तबा,अपमान का,हमें करना पड़ता है सामना
चाकर हैं हम,तो क्या हमारा,आत्मसम्मान नहीं है
हुजूर,इंसान है हम,कोई उपभोग का सामान नहीं है
उम्मीदों पे आपकी हमें,हमेशा खरा उतरना होता है
हो काँटों भरे रास्ते चाहे,उनसे हमें गुजरना होता है
ऐ "अश्क" इस हाल में,जीना हमारा,आसान नहीं है
हुजूर,इंसान है हम,कोई उपभोग का सामान नहीं है
अरविन्द "अश्क"
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