Arvind "Ashk"   (Ashk)
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Joined 1 April 2018


Joined 1 April 2018
YESTERDAY AT 12:27

जो स्वघोषित धर्म ध्वजा धारक बन कर बैठे थे
ओढ़ चोला सनातन का मन ही मन में ऐंठे थे
जो धर्म मार्ग पे चलने की लोगों को देते थे राय
निर्दोष प्राणियों की खुद ले रहे जाने क्यों हाय
स्वार्थ वश हो कर अंधे,रुख अपना मोड़ लिया
साथ कसाई के मिल कर,धर्म मार्ग छोड़ दिया

एक धर्म संगठन के जो बने हुए हैं अधिकारी
हृदय में मगर इनके जम कर भरी है मक्कारी
है करता पैरवी संगठन तो,जीव के संरक्षण की
और उपलब्ध करवा रहे,ये ठौर जीवभक्षण की
रिश्ता शायद इंसानियत से इन्होंने तोड़ लिया
साथ कसाई के मिल कर,धर्म मार्ग छोड़ दिया

कथनी और करनी में जिसके बड़ा फर्क होता है
याद रखो उस नर अधम को नसीब नर्क होता है
पाप क्षमा नहीं होते कभी प्रजा राजा या मंत्री के
कर्म भोगने ही पड़ेंगे हो चाहे तुम वंशज अत्री के
पाप कर्म से ऐ "अश्क" पुण्य कलश फोड़ दिया
साथ कसाई के मिल कर,धर्म मार्ग छोड़ दिया

अरविन्द "अश्क"

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1 MAY AT 15:04

रंग-ए-रुख यारों,मानिंद -ए- गुलाब होता है
साया-ए-वालिद में जीना,लाजवाब होता है

रहता है मेहरबान,मुकद्दर भी इंसान पे यारों
और,वक्त भी तो,कहाँ कभी खराब होता है

होता नही गम कोई,सताने वाला दिल को
भरा खुशियों से,ये दामन बेहिसाब होता है

पूछे चाहे कितने भी,पेचीदा जिंदगी हमसे
पास हमारे,हर सवाल का,जवाब होता है

मिलती नही मात,हसरतों को कभी अपनी
तब्दील हकीकत में,हर एक ख्वाब होता है

देता है हर खुशी जो,जमाने की इंसान को
हाँ,वालिद ही ऐ "अश्क",वो वहाब होता है

अरविन्द "अश्क"

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29 APR AT 17:16

जर्द गुल -ए- दर्द फिर से शाद हो गए
अश्क कैद-ए-चश्म से आज़ाद हो गए

कोशिश भूल जाने की की इतनी मर्तबा
मानिंद -ए- आयत मुझे वो याद हो गए

मार वक्त की पड़ी जब कभी भी दोस्तों
पल भर में शाह भी कई बरबाद हो गए

उजड़ चुके थे शहर जो यादे माझी के
आज जाने कैसे फिर आबाद हो गए

चली नसीब ने मेरे ये क्या चाल दोस्तों
हाफ़िज़ थे मेरे जो,वही सय्याद हो गए

ऐ"अश्क" थे शुमार कभी जो ख्वाब में
अनसुनी सी एक वो फरियाद हो गए

अरविन्द "अश्क"

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21 APR AT 21:27

चलो बताओ जरा

बाज़ार में

कौन

सबसे अमीर
खरीदार होता है

यकीनन ऐ "अश्क"

जो पकड़ कर

अंगुली

दादा की आए

वो पोता होता है

अरविन्द "अश्क"

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21 APR AT 19:52

की दराज स्याह लिबास ने,रंगत ऐसी शबाब में
हो मिलादी जैसे किसी ने,शराब कोई शराब में

आए वो रुख नजर,इंकार नजर हटने से कर दे
है दिलकशी ही ऐसी कुछ हुस्न -ए- जनाब में

लिख सवाल -ए- वस्ल,था दिया जो खत मैनें
भेजा लिफ़ाफ़ा खाली,उसने उसके जवाब में

है मुश्किल बहुत,पाकीज़ा,मिल पाना ऐ दोस्त
करें क्या तलाश मोहब्बत,जहान-ए-ख़राब में

है होता जो दिल को मेरे,तेरे हिज्र में ऐ जान
नहीं है दर्द इतना,कसम से,दोखजो अज़ाब में

रोक ले दीदार से,चश्म-ए-दीवाना-ए-हुस्न को
हिम्मत नहीं ऐ "अश्क",इतनी किसी नकाब में

अरविन्द "अश्क"

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14 APR AT 18:17

रूबरू जब आएंगे,लम्हें आने वाले
न जाने क्या लाएंगे,लम्हें आने वाले

महकेंगे बन कर,गुल -ए- मसर्रत, या
बन अभ्रे गम छाएंगे,लम्हें आने वाले

है वादा,किसी भी हाल में,यारों मुझे
मुस्कुराता ही पाएंगे,लम्हें आने वाले

करेंगे शफा,जख्मे जिगर पर,या फिर
सितम मुझपे ढाएंगे,लम्हें आने वाले

होगा लबों पर,इनके नौहा,या यारों
सोजे सुकून गाएंगे,लम्हें आने वाले

जानता हूँ ऐ"अश्क",के आएंगे जैसे
गुजर,वैसे ही जाएंगे,लम्हें आने वाले

अरविन्द "अश्क"

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11 APR AT 14:30

दिल दीवानों का तुम,यूं जलाया न करो
स्याह लिबास में बाजार,आया न करो

चलो माना,है ये शहर,तुम्हारा भी मगर
गलियों में इसकी आग,लगाया न करो

सरे राह, बिखरा कर, जुल्फें ये अपनी
सोए जज़्बात,लोगो के,जगाया न करो

है सुर्ख लब तुम्हारे, पहले ही गुलों जैसे
सुर्खियाँ और,तुम इनपे,सजाया न करो

जोड़ लेता है,हर कोई,साथ नाम इसके
नाम अपना,तुम सबको,बताया न करो

खुलते ही दरीचा,नजर आ जाया करो
लगा वक्त,"अश्क" को,सताया न करो

अरविन्द "अश्क"




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10 APR AT 19:09

हूँ काम का जब तक,मुझे काम लेंगे
फिर दामन,किसी और का,थाम लेंगे

हैं लगे जो,जी हुजूरी में,अभी यारों
निकला मतलब,तो न मेरा नाम लेंगे

है इखलास भी,तिजारत इनके लिए
की इमदाद भी,तो उसका दाम लेंगे

है आज मुन्तजिर,मेरे खत के, कल
पढ़ के नाम मेरा,न हाथ में खाम लेंगे

हुआ तमाम जो,मकसूद फिर देखना
खबर तलक न मेरी,किसी शाम लेंगे

छीन,बादा-ए-सुकून,मेरी ऐ "अश्क"
भर मसर्रतों से वो,अपना जाम लेंगे

अरविन्द "अश्क"

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10 APR AT 11:49

जाने मुस्तकबिल-ए-रब्त क्या होगा
मरासिम का हमारे बख़्त क्या होगा

दर्द मेंभी नहीं देती,रोने खुद्दारी मेरी
इम्तेहान अब और,सख्त क्या होगा

है खफ़ा मुझसे बहारें मुद्दत से यारों
शाद दिल का मेरे दरख़्त क्या होगा

देख हश्र-ए-माझी समझ ले ऐ दिल
अंजाम-ए-अना-ए-तख्त क्या होगा

बहल जाएगा दिल महफिल में मगर
ऐ"अश्क" तन्हाई के वक्त क्या होगा

अरविन्द "अश्क"

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5 APR AT 21:22

गुल-ए-दिल पर,बहार आए कैसे
तुम नहीं हो तो,करार आए कैसे

बादा-ए-ग़म से, मखमूर हुआ मैं
जामे शराब से,खुमार आए कैसे

दफ्न ख़्वाब,हैं इस कशमकश में
छोड़ कर अब,मज़ार आए कैसे

किया न इश्क, तो कहेगा खुदा
जिंदगी बेकार,गुजार आए कैसे

समझे मजबूरियाँ कोई,तो जाने
छोड़ वो अपना,दयार आए कैसे

शहर-ए-गम से,न पूछ ऐ "अश्क"
हो कर हम, फरार आए कैसे

अरविन्द "अश्क"

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