दिल दीवानों का तुम,यूं जलाया न करो
स्याह लिबास में बाजार,आया न करो
चलो माना,है ये शहर,तुम्हारा भी मगर
गलियों में इसकी आग,लगाया न करो
सरे राह, बिखरा कर, जुल्फें ये अपनी
सोए जज़्बात,लोगो के,जगाया न करो
है सुर्ख लब तुम्हारे, पहले ही गुलों जैसे
सुर्खियाँ और,तुम इनपे,सजाया न करो
जोड़ लेता है,हर कोई,साथ नाम इसके
नाम अपना,तुम सबको,बताया न करो
खुलते ही दरीचा,नजर आ जाया करो
लगा वक्त,"अश्क" को,सताया न करो
अरविन्द "अश्क"
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