सुलगती इन सांसों को ना जाने कौन इसे हवा दिये रहा हैं! दबी-दबी सी आवाजें खुद शोर किये जा रहा हैं! ये सर्द रातें ना जाने कौन सीने में आग दफ़न किये जा रहा हैं! नींद में ही तो हूं अभी और ना जाने कौन इतने कफ़न दिये जा रहा हैं!
सुना है मेरे दोस्तों ने जिंदगी की बुनियाद बदली है। जवानी से निकल कर बुढ़ापे की कार पकड़ी है। ये कार कहां तक जाएगा मुझे भी पता नही...... लगता है नोटो से लिपट कर कफन में एक दिन सवार हो जाएगी।