QUOTES ON #कठुआ

#कठुआ quotes

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16 APR 2018 AT 12:51

गुड़िया के बदन के वो निशां मुझसे पूछते
नक्शे में इंडिया के हिंदुस्तान कहां है ??

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16 APR 2018 AT 12:09

ढूँढते हुए अपने खोये हुए घोड़े को
वह अपनी जिंदगी को खो बेठी..
फिर एकबार भारत की एक और बेटी
दरींदो के हाथ अपना सबकुछ खो बेठी
तड़पी होगी...चिल्लाई भी होगी,वह बेटी
सहम कर डर से बहोत धबराई भी होगी
पता नहीं कैसे उन दरींदो ने अपनी
मानवता बिसराई होगी
कलंकित हुई है फिर ये भूमि
आज फिर से मानवता शर्मसार हुई
"कठुआ"में किए गये पाप से
आज फिर नारी की सुरक्षा एक सवाल हुई..


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14 APR 2018 AT 17:41

रौनक लगी हुई है मगर शान कहाँ है
ज़िंदा अगर हो तुम तो भला जान कहाँ है

यूं तो है बहुत देखो इंसानी खाल में
फिर क्यों सवाल उठ रहा इंसान कहां है

गुड़िया के बदन के वो निशां मुझसे पूछते
नक्शे में इंडिया के हिंदुस्तान कहां है

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13 APR 2018 AT 21:10

जिस देश में स्त्री भोग की वस्तु समझी जाए,
ईश्वर करे उस देश में बेटी कभी जन्म हीं ना पाए।

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12 APR 2018 AT 18:01

भले देश की आज़ादी पर हों
दो प्रश्न चिन्ह उन्नाव कठुआ
है न्याय की इस दौड़ मे
धर्म खरगोश मानवता कछुआ

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15 APR 2018 AT 17:46

Truth




देश में दरिन्दगी देख लिखने का अब
दिल नही करता...
कितना भी क्यों न लिख लू उस शख्स को
हासिल नही कर सकता....!

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15 APR 2018 AT 0:18


#JUSTICE FOR "VICTIM"







शर्म आती है ये कहने में की वो हमारी कॉम के है,
आग में जला दो उनको ये समझ कर की ये मोम के है
वो मासूम भी किसी की बेटी थी,
उसके माँ - बाप ने उसमे अपनी दुनिया समेटी थी
जो ऐसा घिनौना काम कर सकते है..वो किसी जाहिल से कम नहीं,
इनका बोझ अगर धरती से कम भी हो जाए तो हमें कोई गम नही...

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11 JUN 2019 AT 7:30

दाद दी ना जा सकी
बहुत बेहतरीन थी नज़्म, फिर भी
महज़ फ़साना नहीं था, हकीकत थी उसमें....

और हकीकत की ऐसी हकीकत थी जो कि
तड़प और बेबसी का अख्तियार थी,
वो फ़ूल सी नाज़ुक इक प्यारी सी बच्ची की
मासूमियत के लूटने का दीदार थी,

'हाय ये क्या हुआ' की निराशा भी थी
'अब भी जिंदा है क्या' की आशा भी थी
कोई सुंदर सी तस्वीर बना के बिगाड़े
कोई ज़ोर का मुक्का जो पेट में मारे
तड़प थी, दरद था और चीत्कार थी

होंठ हिल कर रह गए, रोंगटे खड़े हो गए
कहने वाले की अपनी, आपबीती थी उसमें
महज़ फ़साना नहीं था, हकीकत थी उसमें...

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14 APR 2018 AT 10:47

अब की बैसाखी सखी तू मत निकलियो घर से
खेत में फसलें सारि काट गई है
और लाल सूरज दोपहर को ताकता है ऊपर से
ज़लज़ला रोशनी का फिर भीखर जाता ज़मीन पर

और बूढ़े बरगद भी अब कट गए है
भूत जो थे टंगे शाखों पर
खुले मैदानों में भटक रहे है

अब की सखी न जाइयो मंदिर को
मंदिर में भगवान भी अब दर गए है
न खैलियो बैसाख में मैदान में सखी
खेत में फसलें सारि कट गयीं हैं
न जाइयो सखी घर से बाहर
घर के बाहर भूत सारे अब खड़े है

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14 APR 2018 AT 22:50

इस आवाज़ को अब ख़ामोश होने न देना,
किसी बेटी के बाप को अब रोने न देना,
उस बच्ची के ख़ून की हर बूँद से इंक़ेलाब लाएँगे,
सीनों में लगी है जो आग उसे सोने न देना।

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