इंसानों की इंसानियत को..
है नफरतों का दौर ये,
सब पालते हैं हैवानियत को..
हकीकत से परे किसी मुग़ालते में हैं,
भुला चुके हैं अपनी रूहानियत को..
ढाला था कुदरत ने सबको एक ही सांचे में,
पर इंसान ही नहीं समझता इंसान की अहमियत को
𝖘𝖍𝖆𝖐𝖙𝖎-
*मान'सून* का अर्थ है....
ना बच्चों की *मान* ....
ना बीवी की *सुन*.......
बस बारिश में भीग.....
और पंख लगा के उड़........-
उड चले है बन के नेकी कि उम्मीद, मंजिल जरूर मिलेगी, ऐ है उम्मीद।
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उड चले हम हौसले कि एक सकारात्मक उडान लिये, लक्ष्य का कुछ अता पता नही, देखो हम ठोकर खा गये।
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उड़ चला
है यह कहानी किसी और की
मेरे यारों अब के फसाना नहीं
फिर उड़ चला आसमानों में
परिंदो का होता ठिकाना नहीं..!
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उड चलें,
दूर कहीं, जहाँ कोई सरहद न हो,
दिल लगाने की जहाँ कोई हद न हो,
किसी को सताना कोई मकसद न हो,
खुशियों के लिऐ कोई जिद्दोजहद न हो.
और गम की गलियों के लिए कभी फुर्सत न हो.
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उड़ चला पश्री अपनी मंजिल की तरफ, माना की रास्ता थोडा कठिन है लेकिन हौसला पस्त नही बल्कि नेक है।
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जिंदगी के कशमकश में कुछ इस कदर उलझे रहते हैं
जी करता है उड़ चले हम बादलों के पार उस नील गगन में, होगी नहीं जहाँ उलझनें और न ही जिम्मेवारीयाँ,
बस होंगी एक सपनों की सुनहरी दुनिया।-