वो उल्फत की शाम याद है ,
सारे बेतुकी इल्ज़ाम याद है।-
पहले विश्वास में लें फ़िर इल्ज़ाम दें देते हैं लोग दोस्ती में विष को आस मान पैगाम देते हैं लोग
आनंद कैसे आता होगा उन लोगों को आनंद उन्हें
जो झूठी तसल्ली ओर झूठा साथ दें देते हैं लोग।-
इन क़ैद परिंदों में एक मेरा भी "नाम" है ।
बेच रहे हों इन्हे क्या मेरा भी "दाम" है ?
क्यों क़ैद किया बेजुबानों को इन पिंजरों में,
इतना तो बता दो क्या जुर्म क्या इल्ज़ाम है !-
समझना मुश्क़िल है अंदाज़-ए-मोहब्बत, तुम ये गुमनाम नशा रहने दो l
तुम्हारे बस में है ही नहीं वफा जनाब छोड़ो तुम इल्ज़ाम बेवफ़ा रहने दो l— % &-
न जाने क्यूं हर कोई दे रहा इक दूसरे पर इल्ज़ाम,
झांककर तो देखो कभी अपने अंदर भी कमियां मिलेंगी तमाम-
रंग हर बार बदलने वाले..
ख़ुद निभा ना पाए वो वजह
इल्ज़ाम मुझ पे ही लगाने वाले..
तब्दील कर गए मुद्दों को ऐसे
फ़साना भी मसला बनाने वाले..
दामन-ए-वजूद को दाग़दार कहके
वाह क्या ख़ूब करते है ज़माने वाले..-
गम इस बात का नहीं है इल्ज़ाम झूठे लगे,
दुख इस बात का है कि साबित सच हुए ।-
खुद को पाना चाहती हूं,
मैं खुद को खोना चाहती हूं।
अपनी गलती का इल्ज़ाम,
मैं इश्क़ पर लगाना चाहती हूं।-