उड़ जाती है नींद में सोचकर
कि सरहद पे दी गई वो कुर्बानियां
मेरी नींद के लिए थी
इंकलाब जिंदाबाद-
माँ ने आँसू पोछ लिए और
बाप का कन्धा फूल गया,
उनका बेटा भगतसिंह बन
जब फाँसी पर झूल गया।
आज माँ की आँखें भींग गयी और
बाप के दिल में शूल गया,
क्रांतिकारियो के बलिदानों को
जब बच्चा-बच्चा भूल गया।।-
नमन है उन मात-पिता को,
जिन्होंने ऐसे वीर दिये हैं।
जब भी गद्दारों ने वार किए तो,
उन्हीं वीरों ने चीर दिए हैं।।
दूर अपनों से रहकर भी,
कैसे कड़वे घूँट पी रहे हैं।
ये बॉर्डर पे खड़े हुए हैं,
तभी तो हम जी रहे हैं।।
सरहद पे लहराता तिरंगा देख,
ये छाती गर्व से तनी हुई है।
कर्ज़दार है धरती उन शहीदों की,
जिनकी शहादत से ये बनी हुई है।।-
🙏(शहीद-ए-आज़म)🙏
गज़ब की दीवानगी है उसकी...
वो शायरी भी करता है,
तो इंक़लाब के तर्ज़ में-
भगत, सुखदेव, राजगुरु को, चौबीस को फाँसी आई थी,
फ़िर डर के मारे अंग्रेज़ों ने, फाँसी की डेट घटाई थी।
जलियांवाला बाग की घटना, उनके हृदय को नोंच रखी थी,
आज़ादी बनेगी मेरी दुल्हन, ये भगत सिंह ने सोच रखी थी।
मार के जॉन सांडर्स को, फ़िरंगी ख़ेमा हिला डाला,
मात्र इंक़लाब के नारों से, हाहाकार मचा डाला।
116 दिन भूख हड़ताल से, फिरंगियों की मंशा तार हुई,
गोरों ने टेके थे घुटने और उसी दिन गोरों की हार हुई।
भगत सिंह सा लाल हो, ये स्वप्न बने कई पितरों के,
स्वतंत्र कर गए देश को, चूम के फाँसी संग मित्रों के।
पढ़ भी न पाये अंतिम पन्ना और बोले चलो गमन करते हैं,
तीनों स्वतंत्रता सेनानियों को, हम शत शत नमन करते हैं।-
महज़ बारह की उम्र में जिसने लक्ष्य आज़ादी का ठान लिया,
कराके रहेगा देश को आज़ाद यह प्रण उसने मान लिया,
वो ही जिसने राजगुरु के साथ मिलकर साण्डर्स का काम तमाम किया,
वो फेंककर बम असेम्बली में जिसने किसी को न कुछ नुकसान दिया
वही रहकर बेख़ौफ़ी से जिसने इंकलाब जिंदाबाद नारा लगाया,
जब ले गयी पकड़कर पुलिस तो भी वो तो न घबराया,
फाँसी पर चढ़ करकर भी जिसने भारत माँ का जयघोष लगाया,
हँसते हँसते प्राण दिये उसने वो तो यारो भगत सिंह कहलाया।
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किसकी थी ख़ता, अब उनके हिसाब लिख दो,
पुलवामा की ज़मी पर, फिर इन्कलाब लिख दो।
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फाँसी के फंदे पर हँस हँस कर,
झूल गया वो दीवानों का टोला,
इंक़लाब का नारा देकर,
जिसने रंगा बसन्ती चोला...!!-