बेतरतीब उलझी ही रही गुत्थियां मेरी...
तमाम उम्र निकली तमाम खयाल गुज़रे..!!-
AARAV
(AARU)
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(राधे तेरे चरणों की गर धूल जो मिल जाये)
मैं ख़ाक बन जावां ब्रज गलियाँ दी,
जो मेरा यार उड़ावे प... read more
मैं ख़ाक बन जावां ब्रज गलियाँ दी,
जो मेरा यार उड़ावे प... read more
Joined 16 February 2021
18 APR AT 10:41
बस आख़री आह है ये इन बेकसूर काफ़िओं की,
अब भी न हो मुक्कमल तो कसूर-ए-ग़ज़ल होगा.!!-
2 APR AT 8:54
प्रत्यक्ष है होना..
इन सबमें या तो
तुम्हारा.....
या बस तुम ही हो
ये कुछ भी
नही...!!-
28 NOV 2024 AT 19:57
तू कोई भेज दे जु'गनु ही , मेरा नाम पुकारते हुए,
नफ़स इस बदन की ख़ाक हो उस से ज'रा पहले..!-
7 OCT 2024 AT 18:44
तेरी गजलों को गुनगुनाये हुए फिरते है
ये दिन-रात किताबों को खाये हुए लोग..!!-