QUOTES ON #आपसे

#आपसे quotes

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17 JUN 2020 AT 20:54

आपसे अच्छा तो गूगल है जनाब,,,
जो लिखना शुरू करते ही
दिल की बात जान लेता है ||

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ज़िंदगी है आपसे हर ख़ुशी है आपसे,
राहतें हैं आपसे बेबसी भी आपसे.!

होश का सबब मेरे आपकी मोहब्बत है,
मेरे लफ़्ज़ के मोती आपकी इनायत हैं,
रंज की ये सौगातें बेख़ुदी भी आपसे!
ज़िंदगी है..

ज़िक्र मेरे गीतों में आपकी अदाओं का,
ऐ सनम मैं कायल हूँ आपकी वफाओं का,
इश्क़ का सबब हैं आप आशिक़ी भी आपसे!
जिंदगी है..

सिद्धार्थ मिश्र

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7 NOV 2020 AT 0:34

कुछ मेरी बातें..!

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17 JAN 2020 AT 16:21

आपसे जबसे मुहब्बत हो गई ।
देखिये क्या दिल की हालत हो गई ।।

चैन दिल का हो गया है गुमशुदा ..
और राहत दिल से रुख़सत हो गई ।।

इस क़दर है आपने जादू किया ..
हर तरफ आबाद जन्नत हो गई ।।

अब नज़र में आपका ही नूर है ..
आपकी जबसे इनायत हो गई ।।

दिल मुहब्बत के नशे में चूर है ..
आपने चाहा ये किस्मत हो गई ।।

रश्क़ हमसे चाँद को होने लगा ..
चाँदनी को भी शिकायत हो गई ।।

आप की नज़रों से खुद को देख के ..
ये 'दिया' भी खूबसूरत हो गई ।।
-Dipti

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आपसे न मिलते तो,
जिंदगी जीने का,
लुत्फ़ नही होता
शेरों में ये वजन नही होता,
ये ख्वाहिशों का गगन नही होता।।
सच
क्या क्या न होता?
आपके एक न होने से!!
आप ही सोचिये??

सिद्धार्थ मिश्र

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इश्क़ की एक शमा हम जला दें अभी,
सारे शिक़वे गिले हम भुला दें अभी!

एक मुद्दत हुई दूर तुमसे हुए,
फिर मिलें आपसे फैसला लें अभी!

ये अँधेरा भी रौशन हो तेरे लिए,
दीप क्या अपना दिल हम जला दें अभी!

आप भी एक दिन याद हमको करें,
सोचते हैं*स्वतंत्र*वो वजह दें अभी!!

सिद्धार्थ मिश्र

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नज़्म झूठी ख़्याल झूठा है,
दिल फ़क़त आपसे ही रूठा है.!

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वक़्त के इस दौर में कोई किसी का नही।
इंसान आपको तब तक पूछता जब तक,
उसे आपसे कुछ मिलने की उम्मीद होती हैं।

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16 DEC 2020 AT 13:27

आज कुछ पल बाकी है..
कुछ आपकी.. कुछ हमारी..
वो हसीन वादे की वो हसीं बाकी है!

आज कुछ बातें बाकी है..
कुछ मेरी.. कुछ हमारी..
वो मुलाक़ात की वो यादें बाकी है!

आज कुछ साथ बाकी है..
कुछ आपकी.. कुछ हमारी..
वो रंगीन शाम की वो साथ बाकी है!

आज कुछ याद बाकी है..
कुछ मेरी..कुछ आपकी...
हम दोनों की वो साथ वाली रात बाकी है!

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अगर परछाईयाँ आपसे बोल सकती,
तो अंधेरों की बेहिसाब शिकायत करती,
उजाले की पनाह में जी उठने के बाद,
तारीकियों के लौटने तक मोहब्बत करती!

चांदनी रातों में तलाशती अपना वजूद,
ख़ुदा के रहम-ओ-करम में इबादत करती,
आफ़ताब की रोशनी को हमनशीं कहती,
गहराती शाम के धुंधले रंगों से अदावत करती!

सिद्धार्थ मिश्र

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