अनदेखे धागों से यूं बांध गया कोई
वो साथ भी नही और हम आजाद भी नही...
🥀💔💫-
काश मैं पंछी होता तो कहलाता अम्बर नरेश
और जी चाहे तो उड़ जाता मैं परियों के देश
मैं मन मर्जी से उड़ जाता ना छू पाता कोई द्वेष
और ना बाने की चिंता होती ना होता कोई भेष
मन चाहे तो खाता पीता मन चाहे मैं सो जाता
बैरी दुनिया से दूर कहीं मन चाहे मैं खो जाता
मैं पंख पसारे उड़ जाता कोई ले आता संदेश
ना मीरा रोती,ना राधा रोती,ना रोते कुंती नरेश
दुनिया मुट्ठी में होती मैं उड़ जाता सात समंदर
डर भय ना मुझमें होते और ना होते मेरे अन्दर
और सब बन्धन से मुक्त मेरा घर होता परिवेश
आसमान में अठखेलियाँ करता अजब अनेक-
आया हूं नए शहर में, तुमसे जुड़ने तो दो
मै परिंदा हूं यारो, जरा मुझे उड़ने तो दो।-
किसने कहा कि बादाम खाने से अक्कल आती है ?
एक बार धोखा खाकर भी देखलो...
शान ठिकाने न आये तो बताना !-
झुक जाऊंगा सजदे में तेरे यूहीं मै
पर डर है, कही तू ख़ुदा हो गया तो....
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मन के अंधेरो में चिराग़ जलने तो दो
आंखों में मेरी सपनों को पलने तो दो..
गिरने के डर से ही बैठा हूं कब से
उड़ान जूनून से अब थोड़ी भरने तो दो..
नाकामयाबी ही नही इन लकीरों में
मुझे कोशिशे तमाम करने तो दो..
दिलकश सुकून के पल नसीब होंगे
बस गम-ए-शाम ये ढलने तो दो..
छोटे बड़े औेदे सारे पा लूंगा
किमत ख़ुद की पता चलने तो दो..
शखसियत अपनी होनहार लिख दूंगा
कमियां मुझे मेरी खलने तो दो....
सुना है बहोत मुश्किलें है राह में
इक इक करके सबसे मिलने तो दो..-
झूठा नहीं मै सच्चा बताता रहा हूं ख़ुद को
मै आईना ही दिखाता रहा हूं ख़ुद को...
रिवाज़ो में लिपटे सबक सिखाते गए वो समझदारी का
मै अदब में ही झुकाता रहा हूं ख़ुद को...
उम्र भर चलता रहा सिलसिला आजमाइशों का
मै खौफ में ही मिटाता रहा हूं ख़ुद को...
कहना क्या गैरो से उन कामयाबी के अफसानों का
मै अपनो में ही घटाता रहा हूं ख़ुद को...
बेरुखी ही है यहां दौर बदलता नही आलमो का
मै ज़ख्म ही लगाता रहा हूं ख़ुद को...-
दोनों हाथों में पकड़कर रखो अपने ख्वाबों को
कहीं ये जुगनू संग उड़ ना जाए, जो घूमंतू है!!
अपनी उमंगों को बहक जाने दो बेपरवाही से !!
जो दूर चला जाए जो एक किनारा तो मिल जाएगा-
इस छोटी-सी ज़िंदगी के कुछ बड़े ख्वाब है।
इसलिए तो हम अभी परिंदों की तरह
आजाद है।।-
ये कौन बैठा है यादों के दरिचों में,
गुमशुम सोचता है चांदनी रात के उजालों में
ज़रा बताए तो आकर कोई मुझे,
क्या ज़िक्र अब भी उसका है मेरे सवालों में
यकीं नही अब मुक्कदर की बातों पर,
सब्र टूट रहा है इन आजमाइशों के जालो में
रास नहीं आती पिंजरे सी दुनियां अब,
ये परिंदा थक चुका है आज़ादी के ख्यालों में...-