उत्सर्ग के समयमेरा ध्यान अंधकार युग में था कि अब प्रेम का पर्यायकौन कहने आएगा मुमुक्षु या रसिक !? -
उत्सर्ग के समयमेरा ध्यान अंधकार युग में था कि अब प्रेम का पर्यायकौन कहने आएगा मुमुक्षु या रसिक !?
-
मुझे इसी रूप में ही गढ़ा गया है विधाता ! ने मुझे यही तत्व दिया है स्त्रीत्व ही मेरा आभूषण हैनारीत्व हीमेरा श्रृंगार है -
मुझे इसी रूप में ही गढ़ा गया है विधाता ! ने मुझे यही तत्व दिया है स्त्रीत्व ही मेरा आभूषण हैनारीत्व हीमेरा श्रृंगार है
फ़ुरसत मिले कभी तो मेरा इख़्तियार कीजिएमैं महलों की रियासत नहीं जो रख कर भुला दी जाऊंमैं सदा की आबोहवा हूंजिसे छू कर गुजरती हूंअकलुषित कर देती हूं -
फ़ुरसत मिले कभी तो मेरा इख़्तियार कीजिएमैं महलों की रियासत नहीं जो रख कर भुला दी जाऊंमैं सदा की आबोहवा हूंजिसे छू कर गुजरती हूंअकलुषित कर देती हूं
आंख खुली तो सामने जागीर नजर आई पर तुम नज़र नहीं आए मैंने ठुकरा दी...मुझे तुम्हारे नैनों कीतुम्हारे अधरों कीतुम्हारे स्नेह की तुम्हारे प्यार कीजागीरदारी चाहिए -
आंख खुली तो सामने जागीर नजर आई पर तुम नज़र नहीं आए मैंने ठुकरा दी...मुझे तुम्हारे नैनों कीतुम्हारे अधरों कीतुम्हारे स्नेह की तुम्हारे प्यार कीजागीरदारी चाहिए
मैं मैं नहीं रहा !! तुम होना चाहता हैफिर तुम तुम नहीं रहा !! हम होना चाहता है -
मैं मैं नहीं रहा !! तुम होना चाहता हैफिर तुम तुम नहीं रहा !! हम होना चाहता है
आज्ञा दो ! अपनी सामीप्यता कोनहीं तो मैं उल्लंघन कर जाऊंगीआज्ञा दो ! मध्यस्थता कोनहीं तो मैं विवाद कर जाऊंगीआज्ञा दो ! प्रेम प्रणय कीनहीं तो मैं प्रवंचना कर जाऊंगीमैं प्रेमातुर प्रेमपिपासू प्रेमनिमग्नतुम्हारे परिणय पाश में बंधित हूं प्रतिज्ञा करो !! साथ निभाने कीमुझे अधिग्रहण करो, ब्रजनन्दन !नहीं तो मैं महाभियोग लगाऊंगी -
आज्ञा दो ! अपनी सामीप्यता कोनहीं तो मैं उल्लंघन कर जाऊंगीआज्ञा दो ! मध्यस्थता कोनहीं तो मैं विवाद कर जाऊंगीआज्ञा दो ! प्रेम प्रणय कीनहीं तो मैं प्रवंचना कर जाऊंगीमैं प्रेमातुर प्रेमपिपासू प्रेमनिमग्नतुम्हारे परिणय पाश में बंधित हूं प्रतिज्ञा करो !! साथ निभाने कीमुझे अधिग्रहण करो, ब्रजनन्दन !नहीं तो मैं महाभियोग लगाऊंगी
इस देह की पिपासा का क्या करूं !?जो मुझे मृत्तिका किये जाती है रति से अनुरागित मैं !!प्रतिकर्षण से उत्पीड़ित हुई जाती हूं मेरी हृदय की पीड़ा को कौन समझे !?मेरी इच्छा तो तृप्ति की ही है अब ये मेरा मोह है या आकर्षण !!प्रेम तृष्णा से उद्वेलित मधुपान को स्पर्श किये जाती हूं मैं मदमत्त हुई जाती हूं ब्रजरसिक ! तुम्हारी आसक्ति में तुम्हें पाने को उन्मत्त हुई जाती हूं -
इस देह की पिपासा का क्या करूं !?जो मुझे मृत्तिका किये जाती है रति से अनुरागित मैं !!प्रतिकर्षण से उत्पीड़ित हुई जाती हूं मेरी हृदय की पीड़ा को कौन समझे !?मेरी इच्छा तो तृप्ति की ही है अब ये मेरा मोह है या आकर्षण !!प्रेम तृष्णा से उद्वेलित मधुपान को स्पर्श किये जाती हूं मैं मदमत्त हुई जाती हूं ब्रजरसिक ! तुम्हारी आसक्ति में तुम्हें पाने को उन्मत्त हुई जाती हूं
मुझे बिछुड़न की टीस सताती हैमुझे बैरन हवा बहा ले जाती है तुम नहीं आये मेरे सांवरे ❣️तुमसे मिलन की उत्कंठा मेंश्रृंगार विहार में लीन हुई जाती हूंफिर भी अगर तुम नहीं आये मैं विरह वियोग में संतप्तसांवरिया बनी जाती हूं... -
मुझे बिछुड़न की टीस सताती हैमुझे बैरन हवा बहा ले जाती है तुम नहीं आये मेरे सांवरे ❣️तुमसे मिलन की उत्कंठा मेंश्रृंगार विहार में लीन हुई जाती हूंफिर भी अगर तुम नहीं आये मैं विरह वियोग में संतप्तसांवरिया बनी जाती हूं...
जिस्म का मिलनाकभी तय नहीं होताउसे हम मंजूरी देते हैंआत्माओं का मिलनतय होता है जिसे हमपुनर्मिलन कहते हैं -
जिस्म का मिलनाकभी तय नहीं होताउसे हम मंजूरी देते हैंआत्माओं का मिलनतय होता है जिसे हमपुनर्मिलन कहते हैं
एक हसीन सुबोहएक अनकही मुलाकात मुझे अचंभित कर रही है और तुम्हारा.....बेपरवाह होकर हंसना मुझे स्निग्ध कर रही हो -
एक हसीन सुबोहएक अनकही मुलाकात मुझे अचंभित कर रही है और तुम्हारा.....बेपरवाह होकर हंसना मुझे स्निग्ध कर रही हो