इक समुंदर मेरी आँखों कि अंदर भी हे,
झल्कता रहता हे हरपल
जब चाहे चला लेते है किश्तिया
तेरी यादो की बेखोफ होकर
सूखने लगे तो फिर भर जाता हें ,
तेरी बाते सोच सोचकर।-
आखे सुबह खुलती नही
कहती है मुझसे ये,
कि रात भर तुने मुझे रो कर जगाया है।।-
उनकी यादे जब भी हमे छूती है इन कम्बख्त आखों को पता चल ही जाता है!!!
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आंखें पथरा गई कुछ इस कदर
तुम्हारा इंतज़ार करते करते
की अब राहों में पड़े पत्थरों में भी
तुम्हें हमारी आंखें नजर आएंगी-
तेरी हसरतों को दिल में दबाए रखा है एक जमाने से
होंठ भी अब कतराते हैं मुस्कुराने से
इन आंखों को अब भी तेरे दीदार की चाहत है
तुम्हें देखा नहीं इन प्यासी निगाहों ने एक जमाने से
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माना की तेरी तस्वीर को हम दिल में छुपा रखतें हैं
चाहत को तेरी अपनी जिंदगी बनाए रखते हैं
इन आंखों का क्या कसूर 'कब से देखा नहीं तुम्हें '
ऐ भी तो तेरी दीदार की उम्मीद लगाए रखते हैं
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होती है जहां शुष्कता
यक़ीनन पानी नहीं होता
तुमने देखा है कभी,आँखो में रहता हैं समन्दर-
ज़रूरी नहीं अल्फ़ाज़ ही बयान करे हर बात,
कभी कभी ये आंखे शब्दों से ज्यादा बयान करती है।।।।
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आखे शोर मचाती है
बिन कहे सब कह जाती है
जो जुबा बया न.कर पाए
वो उस बात को समझा जाती है-