बेवजह ही कभी मुस्कुराया करो
गुलाब खुद चुन के जुल्फें सजाया करो
निगाहों की नमी सबको दिखती नहीं
हर किसी को यु नमी ना दिखाया करो-
आवाज़ कि रोशनी जो बुझ गई तो जली नहीं
थी मगर उम्मीद,-ए-लौ जो कभी बुझीं नहीं
जलते चिरागों के तले ही घोर तम घिरे मीले
सारे जहां में रौशनी बिखेरते रहे हैं दिये
-
आवाज़ कि रोशनी जो बुझ गई तो जली नहीं
थी मगर उम्मीद,-ए-लौ जो कभी बुझीं नहीं
जलते चिरागों के तले ही घोर तम घिरे मीले
सारे जहां में रौशनी बिखेरते रहे हैं दिये
-
रंग रूप से नहीं मन को मन से तौलिए
औरों से नहीं मगर खुद से सच तो बोलिए
-
आंखें ये मेंरी सजल किस लिए है
लबों पे थिरकती ग़ज़ल किस लिए है
गमों में है बहती खुशी से छलकती
भला क्या कहें ये तरल किस लिए है-
इन मुकम्मल बोलती आंखों से गीला कैसा
शिकायत उस बोलती जुबां से कीजिए
जो सब बयां करके भी बहुत कुछ छुपा लेती है-
यु ही अपने शब्दों को जाया मत करो
स्वाति के बूंद कि ही भीति अगर इन्हें
उचित सीप ना मिले तो ये भी निर्थक हो जाते-
तेरे साथ चल तो देंगे हम तुम्हें रखना बस ये ख्याल है,
राह के इस छोर से उस छोर तक तुम्हें रखना थामें हाथ है-