"जिस्म"
ख़ाक से जन्मा, ख़ाक में मिल जाएगा
ये बेगाना भी कब तक साथ निभाएगा।।
-
कहते है सब मुझ से
तुम्हें विदा दूँ
नदी के उस पार तुम, इस पार मैं ,
छोड़ू तुम्हें, विदा दूँ
नहीं सम्भव है कि हम-तुम एक तट पर हों,
छोड़ू तुम्हें, विदा दूँ
अंबरात के दो प्रतीर से है हम दोनो
आभासी मिलते हुए
आंचल में शेष है ढेरो स्मृतियां
नही संभव है कि बने नई स्मृतियां
छोड़ू तुम्हें, विदा दूँ
आकाश गंगा के एक ओर तुम, इस पार मैं,
अनवरत एक दिशा में चलते हुए
नही संभव अब दूरियों का कम होना
छोड़ू तुम्हें, विदा दूँ
पर मै कहती हूँ है ये संभव
मैं काया छोड़ विदा लूँ
तुझ से तेरे ही रूप में मिल संयुक्त हो जाऊँ
-
करनी है तुमसे बात, गर तुम चाहो तो
कर दूँ फिर बरसात, गर तुम चाहो तो
तुम थी मैं था, पर वक्त नहीं था
होगी फिर मुलाकात, गर तुम चाहो तो
शम्मा के संग संग हम तुम जले थे
बुझ जायेगी रात, गर तुम चाहो तो
याद अगर हो आँखों की बाज़ी
फिर से शह और मात, गर तुम चाहो तो
टकराएँ जब दो आकाशगंगा
होगा उल्कापात, गर तुम चाहो तो
-
तुम्हारी नाक का लॉन्ग ये सृष्टि है
तुम्हारा चेहरा पूरी आकाशगंगा
..
मैं इससे बढ़कर और क्या उपमा दूँ
या कि और क्या कविता लिखूँ
..
लेकिन ये काल्पनिक बातें होंगी
और तुम शाश्वत स्त्री
..
तुम्हें जिस भी रूप में पूजा जाए
हमेशा कम ही होगा-
"उनकी शख्सियत पर कुछ ना पुछिये,जनाब..
सूरज को दीया दिखाना फितरत नही है मेरी"
Anil Ameta
रखते है फितरत अनगिनत तारों को ख़ुद में समेटने की,
वह एक अदने से सूर्य की शख्सियत को क्या जाने भला !!
-
सिमटती-पसरती
ये रोशनियां
किसी आकाशगंगा के जैसे
सबूत हैं
इस बात का
कि इन दायरों के बाहर
लगातार मर रहे हैं उजाले
किसी ब्लैकहोल में गिरकर
सिरे से खत्म होती
हमारी संवेदनाओं की तरह-
तुम आ रहे हो एक जन्मांतर के पश्चात,
मैं आ रही हूँ भाग कर तुम्हारी अगवानी करने
हर स्मित से आभा आ रही है,
तुम्हारे काँधे पर आकाश वस्त्र सा पड़ा है,
मैं कुछ एक नक्षत्र तुम्हारे ,
चरणों में अर्पित कर रही हूँ
समस्त आकाशगंगा तुम्हारे ,
स्वागत को उमड़ पड़ी है,
मैं मौन हूँ, क्योंकि तुम आ रहे हो
एक वरदान की तरह,
मेरे सौभाग्य की तरह!!!
-