"अक्सर जब
मन अशांत हो
तो कुछ पढ़ लेना चाहिए.....
एक तो मन बहल जाता है,
और, कभी कभी तो
हल भी मिल जाता है "-
कभी -कभी ऐसा क्यूँ होता है
मन उदास दिल रोता है
कभी छोटी सी बात भी
दिल को छू जाती है
कभी बड़ी बात भी हँसकर
टाल दी जाती है
कुछ समझ नहीं आता है
कि ये क्या होता है?
ये कैसी कश्मकश है?
दिल में तूफान सा मचा है
इस बवंडर का कोई नाम नहीं है
बस!मन कुछ ज्यादा ही शांत है
या यूँ कहें, कि अशांत है
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मनातल्या गुंता सुटून ही सुटत नाही.
विचारात अडकून शांतता लाभत नाही.
ओझावळेल्या भावना लुप्त होत नाही.
विचारानंची भ्रमण थांबत नाही.
आभास-स्वप्न नव्हे,
मनातली खळबळ दाटत रही.
सुटून ही सुटका नाही,
विचारानंच्या बेड्या तुटत नाही.-
खूद मुझे दूर कर दिया
इस दिल को चकनाचूर कर दिया
मै अपना दर्द तुम्हें नहीं बताना चाहता
मगर मोहब्बत ने लिखने पर मजबूर कर दिया-
.... कहीं कुछ तो है, कि
कभी कभी " कुछ क्षण "फैला देते हैं
शांत पानी में कंकड़ फेंकने की सी " अशांति "/
" हलचल " ,
और , उसकी " छटपटाहट "
महसूस होती है " आजीवन "....!
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मन का अशांत होना भी जरूरी है,
जिंदगी में कुछ हलचल है,तभी पता चलती है।-
एक मन है जो इतना अशांत है...
जैसे समुद्र में लेहरों से कोलाहल मचा हो
एक लब हैं जो कि निशब्द हैं...
जैसे किनारे पर लहरें शान्त हैं!
और इन दोनों के बीच है चेतना,
जो लहरों को किनारे तक
ना जाने दे पा रही है....
ना तो रोक पा रही है!
एक आंखें हैं जो कभी कभी भीग जाती हैं...
पर जैसे किनारे की शांति देखकर कुछ ही लोग समुद्र के तूफान का अंदाज़ा लगाते हैं
ठीक वैसे ही आंखें पढ़ना हर कोई नहीं जानता!
और इस सब को थामे
एक हूं मैं!!!-