Namita Gupta   (नमिता गुप्ता 'मनसी'🌻🌹)
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Joined 20 April 2018


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YESTERDAY AT 13:08

मैं हर रोज
रात की देहरी पर
चुपचाप रख आती हूं
एक दीप
तुम्हारे साथ का ,

फिर
मेरी सुबह और सांझ
प्रकाशमान रहतीं है
उसकी जगमगाहट से !!

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3 AUG AT 20:08

माना
नहीं तोड़ सकते हम सितारे
ऊंचे आसमान से
मगर तुम
बादलों को लिए घूमते हो
अपनी कविताओं में
सिर्फ मेरे लिए
और टांग आते हो उन्हें
मेरे घर की छतों के ऊपर
ताकि मन चाहे क्षणों में भीग जाऊं मैं
सावनी रिमझिम में !!

-


31 JUL AT 19:58

अपने-अपने क्षितिज

जैसे
कोई प्रार्थना ठहर जाती है
अधखुले होंठों पर
हर बार हाथ जोड़ते हुए,
ठीक इसी तरह
यह मौली भी
बांध चुकी है पवित्र बंधन में
हमारी आत्माओं को !!

ये दो वृत्त
उम्र के हर पड़ाव के साथ
स्वयं को और अधिक
कसकर लपेटते चले जा रहे हैं
आत्मिक प्रेम के सुर्ख लाल रंग में
जैसे गूंजती हैं देर तक
मंदिरों की घंटियां
प्रार्थनाओं को कह जाने के बाद भी !!

हम-तुम
दो विपरीत ध्रुवों की भांति
धीरे-धीरे
खोज ही लेंगे अपने-अपने क्षितिज
एकाकार होने के लिए !!

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24 JUL AT 10:08

*अपूर्णताओं के संग*

वृक्षों को
उड़ने के लिए पंख नहीं मिले ,
और पंछियों को
ठहरने के लिए जड़ें ,

इसीलिए
वृक्ष
घोंसला बनाते पंछियों को देखकर
हो जाते हैं तृप्त ,
जबकि पंछी
घोंसलों में ठहरकर,

यहां सबको
सबकुछ कहां मिला है ,
अपनी-अपनी अपूर्णताओं को स्वीकार कर
हमें ऐसे ही चलना होगा !!

-


23 JUL AT 12:25

मुझमें तुम

हर शाम
जब बादल घुमड़-घुमड़कर घिरते हैं
मैं उन्हें देखती हूं ऐसे
मानो सब के सब
तुम्हारे स्वर की ही प्रतिध्वनियां हों,
वो बादल
कुछ नहीं कहते,, कुछ भी तो नहीं
बस टकटकी लगाए देखते हैं मुझे,
ठीक वैसे, जैसे तुम देखा करते हो
'मुझे देखते वक्त' ,
मैं
इन बादलों से कहूं भी तो क्या
तुम्हारे बिना
कुछ भी मेरा सा नहीं लगता
ना ये शामें, ना हवाएं,,ना मैं खुद ,
तुम्हारे आदत
इस क़दर रच गई है मुझमें
कि अब हर सोच,,हर मौन
तुम-सा लगता है ,
तब मैं
अपने भीतर खोजती हूं तुम्हें
और पाती हूं
कि तुम तो वहीं हो,
जहां मैंने खुद को छोड़ दिया था ,
ऐसा लगता है
मैं प्रेम में नहीं हूं अब
बल्कि प्रेम ही हूं
तुम्हारे स्पर्श से,,गंध से,,और उस छाया से
जो हर बारिश में
मुझे "तुम" बना देती है !!

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23 JUL AT 12:14

अबकी सावन में

देखो सावन की पड़ी हैं फुहार मेरे आंगन में ,
मेघा झूमकर बरसना आज मेरे आंगन में !!

जो छूटा था "बचपन" वो फिर लौट आया ,
लौट रहीं खुशियों की सौगात मेरे दामन में !!

हरी चूडियां खनकें, मेरी पायल भी झनकें,
हरी ओढनी पे लहराए बहार मेरे आंगन में !!

लाल बिंदिया सजाओ सखी, मेंहदी भी लगाना ,
धरा फूलों से कर रही श्रंगार अबकी सावन में !!

ये आंचल भी भीगे, मेरा तन मन भी भीगे ,
उठे कोई हूक सी अंजान अबकी सावन में !!

तुम तोहफे न लाना, मंहगी चीजें न लाना
आ जाना लेके अपना प्यार अबकी सावन में !!

झरतीं नन्हीं-नन्हीं फुहारें जैसे स्वर वीणा के,
'शब्दों' को मिल गई तान अबकी सावन में !!

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14 JUL AT 20:41

प्रकृति 
पहले से तय रखती है कि 
हमें कब उगना है,,कब खिलना है
कब झड़ना है,,

वह 
मौन संवाहक है
ईश्वरीय सत्ताओं की !!


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8 JUL AT 14:42

सुनेगा जब वो

जमीं के हिस्से में कभी तो वो पल आएगा ,
ये आसमां भी जब खुद ही पिघल जाएगा !!

सारे 'उजालों' को भर‌ लूंगी तब मैं आंचल में ,
है रात चाहे घनी, दिन कभी तो जगमगाएगा !!

मेरे 'इंतजारों' का भी कहीं तो कोई सिला होगा ,
सुनेगा जब 'वो' मेरी दुआओं में असर आएगा !!

बातें जो चुप रहीं किसी वजह से अब तलक ,
जुबां पर इनके भी 'खुशनुमा तराना' आएगा !!

संभाले हुए हूं अब भी सिक्के पुरानी यादों के ,
यकीं है अबकी वो गुल्लकों को खोलने आएगा !!

बात सिर्फ इतनी ही नहीं कि मन बेचैन बहुत है
जिंदगी एक ही मिली, क्या समय व्यर्थ जाएगा ?

सुनो, मौसम ये आजकल रूठने-मनाने का है ,
जब सूखी शाखों को सावन‌ हरा कर जाएगा !!

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3 JUL AT 18:03

सबको मिले हैं दुख यहां,,,

बहुत बेचैनियों भरी हैं ये सुकून की राहें ,
रास्तों में ही उलझ रहा हूं‌ धागों की तरह !!

समझो जरा मेरी भी इन लाचारियों को ,
भीग रहा हूं बरसात में कागज की तरह !!

अभी कितने और बाकी हैं ये तेरे इम्तिहान ,
जीतके भी रोया हूं खाली खंडहर की तरह !!

न रोको मुझे आज कहने दो हाल-ए-दिल ,
गया तो न लौटूंगा बीते बचपन की तरह !!

सुनो तमाशा न बनाना मेरी मज़बूरियों का तुम ,
सबको मिले हैं दुख जरूरी सवालों की तरह !!

जैसे उमस भरी धूप को है बारिशों का इंतज़ार,
बरसना है तुमको भी किसी बादल की तरह !!

यूं तो मेरी अभी उम्मीद बहुत बाकी हैं "उससे",
पर अच्छा लगता है सावन, "सावन" की तरह !!


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1 JUL AT 10:08

था ये कैसा सफ़र

ये जीवन है क्या, किसीको क्या पता ,
क्यों खोई रहीं किस्मत की चाबियां !!

आंखों के ही सामने, सब जलता रहा ,
कुछ भी न कर सके, था कैसा धुआं !!

प्रार्थनाएं चुप रहीं, दुआएं लाचार सी ,
"उसके" फैसलों पे करूं कैसे गुमान !!

"तबाही" कैसी ये हुई, दुनिया हैरान है ,
खता किसकी कहें, नहीं सुलझे सवाल !!

लेख कैसे लिख दिए विधि के विधान ने ,
कि ढूंढते ही रह गये "अपनों के निशान" !!

मंजिलों के बिना था ये कैसा "सफ़र" ,
आंखों को न मिला "आने" का इंतजार !!

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