तुम्हारे...
वियोग की अग्नि में तपती,
मैं....
"तुम्हारी वियोगिनी" (प्रेमिका),और....
तुम ,
ओस की बूँद से,
कल्पनाओं में भी अस्थिर,
हृदय में विचरित,
वास्तविक हो के भी
अस्तित्वहीन,
शून्य में विलीन,
"मेरे ईश्वर "(प्रेमी),
अदृश्य और अप्रकट,
पर...
मेरी कल्पना (मन) में छपी,
तुम्हारी अमिट छवि,
मेरे...
मन को शांति देती,
तुम्हारा स्मरण,
ऐसी...
गहन अनुभूति ,
जो तृप्त कर दे,
"अंतरात्मा" !!
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