हर ऐक का अपना तरीका है कोई लबी काटता है कोई गोल काटता है कोई बडी काटता है कोई छोटी काटता है कोई पतली काटता है कोई मोटी काटता है जिन्दगी है जिन्दगी का क्या कभी रो कर,कभी रूला कर कभी हस कर ,कभी हसा कर छोड कर निशा,बिक्रम, कट जाती है।
"चरित्र" अमूमन लोग इसे मनुष्य की काम वासना से जोड़ कर देखते है।अगर किसी का किसी के साथ संबंध है, तो उसे उसके चरित्र का प्रमाण पत्र देने में कतई विलंब नहीं करते। पर क्या मनुष्य का चरित्र सिर्फ वासना तक सीमित है...क्या किसी के साथ संबंध होना उसके चरित्र को धूमिल करता है? या फिर हमने ही चरित्र का दायरा सीमित कर रखा है...। चरित्र, क्या केवल हमारे तन पर निर्भर करता है,क्या मन का इस पर कोई प्रभाव नहीं...क्या गंदे प्रवृत्तियों में लीन मन अपवित्र नहीं होता...क्या वे चरित्रहीन नहीं होते जो इन विचारों में पलते बढ़ते हैं...क्या चरित्र को मात्र तन से जोड़ के देखना उचित है...? आखिर क्यों एक वैश्या'चरित्रहीन' कहलाती है और उसे चंद मूल्यों में खरीदने वाला व्यक्ति 'चरित्रवान'...!
Us chaand Ko bahut gurur hh apni khubsurti pr Us chaand Ko bahut gurur hh apni khubsurti pr Ab unhein Kaun samajye ki usse bhi jyada khubsurat Kohinoor hh mere pass...
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