कभी दीप्त दृगों में,
तो कभी शयन में
प्रतीत होते हम।
कभी पीड़ादायी अतीत,
तो कभी स्वर्णिम
भविष्य होते हम ।।
होता कभी किंचित
कल्पनाओं का आगमन,
तो इच्छाओं की कभी
परिणीति उम्मीद होते हम l
स्वप्न जब भी
साकार होते, मेरे
सहस्त्र भावनाओं की
विजय श्री होती।।
कभी असफलताओं में
हौसला बढ़ाते,
तो कभी उत्थान को
अग्रसर होते हम।
होते कभी
कटु अनुभव निद्रा के,
तो कभी प्रातःकाल की
उम्मीद होते हम ll
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