जब तुम ने मुझे पहली बार देखा था
और 'That's my girl' बोल के उछल पडे थे.... I miss those moments....-
तिरती रही नज़रें चढ़ता हुआ तुम्हें देखकर
सूरजमुखी कबतक रहूं मैं रातरानी हो गई!
प्रीति-
तीर नज़रों से उनकी जो जो घायल हुए
एक एक से पूछा मैंने अदा उनकी
किसी ने कहा हुस्न-ए-शबाब उनको
किसी ने कहा थोड़ा मिज़ाज़ है सनकी-
उधेड़ना होता है खुद को
एक सिरे से दूसरे छोर तक
टटोलती हूं ताक पर
आंखों से ओझल हुई
स्मृतियाँ
जिन्हें बड़े जतन से
तनिक पीछे ढ़केल कर रखते हैं
किसी दिन खो जाते हैं।
अपनी ही पहुंच से
बाहर....!
दराज के ड्रावर से
कपड़े की तहें
खंगालते हाथ अनायास ही
मन की राह बदल लेते हैं
उन सूखे फूलों की पंखुड़ियां
जिन्हें अरसे की उम्र
लगी है
बंद रहकर सारी नमी खो चुके
फूल 🌸
बिखर गए हैं
अनगिनत
अहसास की खुशबूओं से
तर ब तर!
प्रीति
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धरा के प्राण संकट में
हुयी अवरुद्ध सी सांसें
पिघलती हिमनदी व्याकुल
व्यथा किससे सुनाओगे
प्रवासी हो हीं जाओगे
उजड़ते नीड़ की पीड़ा
तड़ागों ने सुनी होगी
व्यथा में सूखते अंतस की
घड़ियां प्रलय सी होगी
द्वंद का संशय ग्रसित
मन कर रहा हरपल
विकलताऐं ये कहती हैं
प्रवासी हो हीं जाओगे
तनिक आभास दे देना
विहग किस ओर जाओगे!
प्रीति
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उपासक की भूमिका में
उपासना ही
एकमात्र विकल्प
मुझे ज्ञात नहीं होता
किंचित
मेरी आराधना के द्वारा
समर्पित पुष्प अर्घ्य
तुम्हारे पाषाण हृदय को
कितना द्रवित करते हैं
मेरी अकथ्य प्रार्थनाएं
शब्दायित होती हैं
या अनंत में विलीन
हो जाती हैं
उपास्य बने रहो
आस्था अडिग
अनवरत अविरल...
प्रीति
३६५ :37
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हिंदी हमारी मातृ भाषा हमारी पहचान है...
क्योंकी हिंदुस्तान हमारा जन्म स्थान है
हिंदी हमारी संस्कृत भाषा की संतान है...
हिंदी का हमारे दिलों में मां के बराबर सम्मान है...
हिंदी भाषा से ही मिला हमें शुरुआती अक्षरज्ञान है...
हिंदी पढ़ कर ही हुआ हमारा दूर अज्ञान है...
आज कुछ ज्ञानी लोग शरमाते हैं बताने में की हिंदी उनकी ज़ुबान है...
वो अंग्रेजी बोल कर बताना चाहते खुद को पढ़ा लिखा और महान है...
पर वो भूल जाते हैं हमारे वेद ग्रन्थ हिंदी और संस्कृत भाषा में लिखित विघमान है...
हिंदी और संस्कृत देवी की तरह पूज्य मान है...
माना की ब्रिटिश निकले बेईमान है...
पर आज भी संस्कारों की बदौलत हम में बसा ईमान हैं...
मानाकि गौरों को अपनी अंग्रेजी पर गुमान है...
पर हर हिन्दुस्तानी के दिल में हिंदी भाषा का सर्वोच्च स्थान है...
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...-
किसी हादसे से आहत होकर
विलाप नहीं करतीं
कभी खुशियों की अतिरेकता का
उन्माद भी नहीं दिखातीं
शव यात्रा में शामिल
न रोती हैं
न शुभ यात्रा में
अधिक मुस्कुराती हैं
आरंभ से गंतव्य की ओर
सरपट दौड़ती सड़कें
परिस्थितिवश कितने मोड़
मुड़कर
यात्राओं के सुखद प्रयास में
आजन्म
लगी रहती हैं...!
प्रीति
365 :108
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