कुछ दाग ऐसे लग जाते हैं मन में,
जो कलेजे को हमेशा रौंदते हैं
घिरे हुए हों हर खुशी से हम,
पर वो दाग आंखों के सामने कौंधते हैं
चंद पलों में बदल जाती हैं हंसी हमारी,
वो पुरानी बातें हमें ऐसे खसोटते हैं
भागते हुए भी रुक जाते हैं हम,
वो पुरानी यादें हर कदम को हमारे रोकते हैं।
कितने बलपूर्वक दबा देते हैं ये हमें,
होश में कभी ये बातें संभाली नहीं जाती
कितने हीं बहा लिए हमने आंसू,
पर ये यादें हमसे भुलाई नहीं जाती
दे तो दिए हैं इसने इतने गहरे ज़ख्म,
की इस ठीक करने की कोई दवाई नहीं आती
ले लिया है हर नशे का भी सहारा,
पर किसी जाम में भी ये दुख समाई नहीं जाती।
कितनी हीं बार हमें गिराया है इसने,
समय ने फिर आगे बढ़कर हमें खड़ा किया
करते रहे हम फिर खुश होने के उपाय,
इस टिस ने हमको भीतर से सड़ा दिया
मानते हैं उस वक़्त बहुत कमज़ोर थे हम,
जो इन गलतियों को अपने सर चढ़ा दिया
अब ऐसी लगी है उन यादों की दाग़ मुझे,
की इसने जीतेजी मुझे भीतर से मरा दिया
कितनी भी तैयारी कर रखी थी मैंने,
इसने जीतने की जगह द्वंद्व से मुझे हरा दिया
ऐ खुदा मैं पूछता हूं आज तुझसे,
क्या सच में मैंने जुर्म है इतना बड़ा किया ।।
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