भौतिकता के इस दौर में, जो ‘विषयो’ में है अटक गया
जीवन विकास की दौड़ में, वो जीवन से ही भटक गया
विज्ञान के इस दौर में, सारे जहा का उसके पास ज्ञान है
मानव होकर भी मानव जैसा, दिखता न उसमें कुछ खास है
नादान है ये मानव, जो चला गया तेरे पास से
यही कारण है मां, जो घिरा पड़ा हैं ‘विषाद’ से
रोती हुई सूरत है जिसकी, जो हो गया निराश है
ऐसे मानव का ‘जीवन विषाद’, मिटा रहा ‘गीता प्रसाद’ है
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