बजरंग चौधरी✍️ (विषाद)   (विषाद✍️)
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Joined 29 May 2019


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Joined 29 May 2019

हम कहां तेरा शहर छोड़ने वाले थे,
मगर....
तेरे लहज़े ने यह भी मुमकिन कर दिया........




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जैसे कल परसों की बात थी
जीने मरने की राह तेरे साथ थी
तु जब रुख़सत हुआ खुद से ऐ–दोस्त
वो तेरी ही नही मेरी भी आखिरी रात थी ।

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अजीब उधेड़बुन से गुजरा हूं में ,
जिंदगी मुस्कुराहट छीनती रहीं,
और उम्र मौत ......

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मुझको पढ़ना तो इस तरह पढ़ना..
मैं पूरा भी हो जाऊ और अधूरा भी ना रहूं....

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भक्त वत्सल मां मीरा

भक्ति के इस अध्याय में मां मीरा बहुत आगे हैं, कलयुग की सबसे बड़ी भक्त और प्रेमिनी मां मीरा ही हैं। वो मां मीरा जिसका कृष्ण गिरधर गोपाल पर अटूट विश्वास हैं जिसके खातिर जहर भी घट– घट पी लिया, मगर जहर का स्वाद अगर कोई मां मीरा से पूछे तो वो क्या बताएं? क्योंकि उन्होंने तो अमृत का रसपान किया था। प्रेम तो सब कुछ भुला देता हैं एक राजकुमारी सब साज सज्जा छोड़ जोगन बन गोविंद की सखी बनने सदा कान्हा के पास को चल पड़ी l और तभी तो मां कहती हैं की मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोय जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोय।। मां मीरा का दर्जा भक्तों के सबसे ऊंचा हैं। भक्ती और प्रेम समर्पण मांगता हैं, सब लूटा दीजिए गोविंद के लिए बहुत कुछ मिल जाएगा दुनियां के लिए।

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जबान गिरवी हैं, शब्द तीखी धार
जिसका कोई वजूद नहीं
उसकी क्या जीत क्या हार

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मेरे कृष्णा;
रोए हम रात भर
इस कदर दिल के गम निकलें
तेरी याद में हमनसीं
आंसू फिर भी कम निकले....

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मेरे कृष्णा ;
तुम हो तो मेरी आस हैं,
तुम हो तो मेरी सांस हैं ,
अजब सा अहसास हैं मुझे
जैसे हरदम तु मेरे आस –पास हैं

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चाहना हो तो एक ही शख्स को
ताउम्र चाहते रहना,
या तो चाहत पूरी होगी
या चाहत में दम निकलेगा...

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जो आंखों में कैद होते हैं ,
उन्हें दुनियां में नहीं ढूंढा जाता जनाब

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