मनुष्य
भ्रम फैलाता है।अपनी शक्ति का
ईश्वर बनने का
और मन के कोने-कोने में
ढूँढ़ता ईश्वर को है!
ईश्वर
सहज सुलभ था आम जन में
निर्विकार सच्चे मन में,भोलेपन में
राम में,रहीम में,ईसा में,अन्य कई में
अब सहस्त्रों रूप में,बंधक बना पास तेरे
उसकी भी सीमाएं हैं।
ईश्वर भी आज डर गया है
अपने बारंबार बँटने से,बंधक होने से
अपने पोस्टमार्टम से।
अब तुझे कैसे मिलेगा?सोच ले......।
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