Guddu Srivastava   (गुड्डू🍁)
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Joined 8 March 2020


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Joined 8 March 2020
23 SEP AT 7:42

सुदूर क्षितिज पर प्रकाश
शुभ्र चंद्रमा युक्त आकाश
मन में कुछ पाने की आस
सुबह की उर्जा भरी एक साॅंस
पुन:कुछ कर लेने का विश्वास
यह चक्र मानव जीवन में
निरंतर चलता रहता है।
पथ समाप्त नहीं होता,सदैव
आगे बढ़ता रहता है।

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20 SEP AT 21:38

"कुछ बातें जीवन की"

१:-"सहजता और सरलता जीवन को कठिनाई से बचाती है।"
२:-इच्छा और वासना को निरंतर कम करते रहने से
जिंदगी आसान हो जाती है।
३:-जीवन मूल्यों को निरंतर परिमार्जित करते रहना हीं लक्ष्य होना चाहिए।
४:-वस्त्र,आभूषण से ज्यादा मूल्यवान चरित्र है।
५:-अन्याय को देखकर मौन रहना पाप है।असत्य का प्रतिकार न करना सबसे बड़ी हिंसा है।

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9 SEP AT 19:08

जिम्मेदारी का बोझ लादे हुए को
अपना पता अक्सर हीं भूल जाता है।
दुनिया में तेरी इक पहचान हो जरूरी है,वक्त कम है
खत्म होने से पहले खुद में खुद की तलाश तो कर लो।

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26 AUG AT 15:26

आज बादलों की लुका-छिपी में अनायास
पिताजी की याद आ गई।ऐसे मौसम में कुछ
वर्षों पहले विद्यालय से लौटने में अंधेरा छाने
लगता था।तब गाॅंव के बाहरी छोर पर वह
कुछ परेशान खड़े मिलते थे।मिलते हीं सवाल
करते थे"काहे एतना देर हो गइल ह हो"और कुछ नहीं
मैं जबाब भी नहीं दे पाता था, क्योंकि घर में हमें
उनसे कुछ भी बोलने की दूर खड़े होने की भी
हिम्मत नही होती थी।डर से नहीं........

आज वो नहीं हैं,और मेरे बच्चे भी मुझसे दूर हैं
वो भी मुझसे खुलकर नहीं बोलते हैं,
हां एक बेटी जो मुझसे कभी किसी चीज के लिए हीं
कभी बोल देती थी खुशामद करने लगती थी,अब वो भी
नहीं है। जीवन की जद्दोजहद ऐसी है सब पढ़ने के लिए
दूर हैं।

मैं अब रोज फोन कर उनसे बातें करने लगा हूं
मुझमें यह बदलाव है,या पिता की नियति यही है
कि वह खुलकर बोल नहीं पाते......

अब मुझे अपने पिता से खुलकर बातें न करना
खलता है।उनकी तस्वीर को देखकर ऑंखे
नींची हो जाती हैं। पिता होना बड़ा कठिन होता है‌।


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25 AUG AT 19:55

काश! ठहर जाता यह पल यहीं पर हमेशा
मैंने तेरी आंखों में रब की छवि को देखा है।

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25 AUG AT 19:36

तुम्हारी आंखों के प्याले में
वफ़ा की नदी देखी है,हरदम
इजाज़त हो तो इसके किनारों पर
होंठों को रख डूब जाऊं इसमें।

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24 AUG AT 18:19

लौटा तो पाया
यहां भी तुम्हीं हो
वहां भी तुम्हीं हो!

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24 AUG AT 8:58

पर कैसे रखें
कहीं भी साफ पानी नहीं है
जो धो दे दूर कर दे, इन विकारों से।
चंद गड्ढों में सिमट गई है निर्मलता
वो भी घिरी पड़ी है गंदे किनारों से।

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24 AUG AT 8:39

यहाॅं जो भी लगा कि मेरा अपना है
वहीं मुझसे दूर खड़ा नजर आया
सबकी मंजिल अलग-अलग है,यही सच है
पीछे देखा तो नहीं मिला खुद का साया।

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20 AUG AT 7:31

तो तुम हवा हो
जहाॅं ले चलो
मैं चलता रहूॅंगा।
मैं वो पतंग हूॅं
जिसकी डोरी तेरे हाथ
चाहो जैसे उड़ाओ
मैं उड़ता रहूॅंगा।

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