Guddu Srivastava   (गुड्डू🍁)
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Joined 8 March 2020


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Joined 8 March 2020
2 APR AT 17:30

अव्वल विकास की बातें हैं,अब
पर क्या हम सच बोल रहें हैं?
पिस रहा है जीवन अब भी पूर्ववत
हम भ्रम के पीछे डोल रहे हैं।

अनेकानेक भ्रष्टाचार के विग्रह
पूज्य मान बन पूजित हैं अब
सामर्थ्य विहीन हुआ है पौरूष
इस दमन के आगे बेबस हैं सब ।

शोर है इनका चहुंओर
बाहुबल का जोर है
दंभ ज्ञान का कुछ भरकर
शोषण करते पुरजोर हैं।

शोषक अन्यायी लोभी कामी
बने विधाता देश के
लूट रहे हैं दोनों हाथों
कपटी सज्जन के वेश में।

राजा कहते हैं दिन आऐंगे
अच्छे अब इस देश के
भ्रम है सबसे बड़ी मिथ्या है
ऑंखे खोल के देख ले।

सज्जनता,ईमान है बेवश
प्रतिभाऐं दम तोड़ रही
चारों तरफ दमन लूट है
भारत माता लाचार बनी।

एक क्रांति को आवाहन दो
एक बार पुनः प्रतिकार करो
पुनः देश का मान बढ़ाने
इन दुष्टों का संहार करो।

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18 JAN AT 16:26

कुत्ते का जीवन निरर्थक होता है
पर उसमें भी कई अपनों के प्रति
स्वामिभक्ति और समझ दिखाकर
अपने जीवन को सार्थक कर लेते हैं।
यही बात मनुष्य पर भी लागू होती है

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15 JAN AT 19:42

समाज,
अब नहीं दिखता कहीं,खो गया है
ऊॅंचे होते मकानों की भीड़ में कबका।

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1 JAN AT 7:17

"नववर्ष"
आओ हे उज्जवल नवीन
नव उम्मीद नव उर्जा लेकर
नवजीवन का भाव प्रकाशित
सबके अंतर्मन में भरकर।

नव हर्ष नव वर्ष में नित हो
सबके दु:ख, विषाद का क्षय हो
क्लेश,कलुषता,कटुता ना हो
नवल धवल हर अंतर्पट हो।

नवरंग,नवढंग सुसज्जित
धरती की आभा हो नूतन
सुख, शांति हर जीवन में हो
सृजन समष्टि में अधुनातन।

किंतु नवीनता के उल्लास में
जीवन मूल्यों का हो परिमार्जन
सबके आगे उज्जवल पथ हो
और विगत का हो आशीर्वचन ।

चतुर्दिक सृष्टि में खुशहाली
सद्भाव,प्रेम,सहयोग बढ़े
करूणा,दया,मैत्री की भावना
आगे स्वर्णिम इतिहास गढ़े।










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28 DEC 2024 AT 20:02

चलो चलता हूॅं अब मैं,मेरे अगले घर को
मुकम्मल सफ़र हुआ मेरा इधर का।
वो जिस डगर लेके जाए, जिस जगह काम दे दे
वो मालिक मेरा मैं मुसाफिर सफ़र का।

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26 NOV 2024 AT 11:34

बंद रखने लगे हैं लोग
आजकल
दरवाजे, खिड़कियां, रौशनदान भी
बस एक अदद खिड़की भी
खुली छोड़ रखनी थी
दिल के बगल में
रौशनी के लिए।


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24 NOV 2024 AT 20:51

केवल प्रेम,मिलन और सहवास की
मादकता हीं नहीं
दु:ख,दर्द अकेलेपन और निराशाओं की
कालिमा भी होती है।

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17 NOV 2024 AT 15:52

हवाओं को सर्द होने दो
आग की लपटों को जर्द होने दो
तेरी आगोश में उभरना शुरू कर दिया है मैंने
मुझे मासूम से अब मर्द होने दो।

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15 NOV 2024 AT 18:45

"द्वैत-अद्वैत"
अस्तित्व राम का यदि कहीं है
निश्चय रावण भी होगा।
यदि युधिष्ठिर संभव है कहीं
निश्चय दुर्योधन भी होगा।
कृष्ण विश्व में कहीं भी हों यदि
उसके पहले कंस वहां है
यदि कहीं निर्माण हो संभव
उससे पहले ध्वंस वहां है।
साहस यदि तुम्हारे अंदर
निश्चय वहीं कहीं डर होगा
यदि चेतना है अंतर में
उससे पूर्व वहां जड़ होगा।
प्रेम यदि चहुंओर है तो
निश्चय वहां हुआ रण होगा
जहां तुमको आज विकास है दिखता
वहीं पूर्व में क्षरण भी होगा।
शांति यदि कहीं संभव है तो
कोलाहल पहले निश्चय है
यदि जीवन एक चक्र है तो
उसके पहले मृत्यु तय है।
सहज सुगम यदि है सबकुछ
उससे पहले कठिनाई तय है
यदि जीत है जीवन में तो
उसके पहले हार भी तय है।
सम की अवधारणा के पहले
विषम का उद्गम निश्चय है
यदि अद्वैत सत्य है अंतिम
निश्चय पूर्व द्वैत भी तय है।



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13 OCT 2024 AT 17:44

किसान खेतों में से खेत तक हीं रहता है
जिधर "वो" ले जाए उधर जाने की बात करता है
उसे चिंता है अपने परिवार के सही से बस परवरिश भर की
वो फिर कहाॅं ,कैसे कोई राह रोक सकता है।

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