दहलीज़.... मेरे अंजुम की.... ऊंची रख छोड़ी थी, तब ही वालिद ने... परवरिश में पंख जोड़ रक्खे थे,
अब..? अब बात और है... बौनी चोखट से... झुक कर, मुस्कुरा कर.... गुज़र भी लेती हूँ... पर... परे पीठ से... आवाज़ भेदती है... देखो ज़रा.... बाप ने कैसे.... बेटी के पर उगाए हैं