एक और मोहब्बत
रह गयी फिर अधूरी,
रस्मों रिवाज़ों के ढोंग में
दम तोड़ गयी प्रेम कहानी।
समाज के कायदों,कानूनों से
क्या हुआ इस इश्क़ को फायदा,
हर कदम पर तोड़ा जिस जग ने
स्वर्णिम इश्क़ के हर एक वायदा।
अधूरे सपनों में पूरा इश्क़ जिया हमने,
हदों को तोड़ मुनासिब इश्क़ किया हमने।
सात फेरों के सात वचन क़िस्मत में ना सही,
मेहंदीवाले उन हाथों पर मेरा नाम ना सही
ताउम्र उनके लिए ही रहेगी मेरी ये मोहब्बत
बहते अश्कों से नहाकर ये कसम लिया हमने।
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