उसे प्यारा होने कि गवाही, इतने प्यार से दी...
वह अपने ही बारे में, वहम पाल बैठा।
उसेे सच्चा कहा, इतने विश्वास से सबने...
पगला खुदको मिटा, विश्वास संभाल बैठा।
होकर औरों की ख्वाहिश, जब जीने लगा यूँ
है वही ख्वाहिश केवल, बना खयाल बैठा।
वक्त की अक्स पर झुर्रियां, जैसे ही उभरीं
ज़माना नई नक़ल की, ख्वाहिश पाल बैठा।
समझा बड़ी देर से मंजर, खुदको खोजने निकला
तोड़ पाया ना मूरत, खुदको जिसमें ढाल बैठा।
हार कर आँखों पर पट्टी, तब झूठी ही बांधी
बेवफाई से वफादारी करने का ले जंजाल बैठा।
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