तुम्हें ना सोचूँ
तो ये दिन कैसे ढलेगा।
ये जुस्तजू और तेरी आरज़ू
अकेला अब मुझसे ना संभलेगा।
प्यार के हक़ में तेरी नाक पर वो गुस्सा,
दर्द के पल में बदली तेरी आँखों की तस्वीर,
ताबूतों में दफ़न किये काली रातें और अतीत,
मैं ना रहूंगा जब,तो कौन तुझे समझेगा।
तू तम्मना है इन हवाओं कि,
फिजाओं से जाकर ये कौन कहेगा।
बागों की रखवाली करता रह गया जो माली,
अपने आशियाँ की तलाश,अब वो दफ़न करेगा।
हाँ जानता हूँ वो घड़ी आने को है,
जब रस्म-ए मोहब्बत को दरकिनार करके,
माथे पर सुहाग और चंद रस्मों को निभाकर,
तेरा हाथ उम्रभर के लिए कोई और पकड़ेगा।
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