तमाम दिलों में ठहरा पर सच है मैं कुछ तलाश में रहा बातों में सबकी रहा बहुत कम किसी के एहसास में रहा कहीं खुद ना रुका चाहा तो कहीं कोई रोक ना सका दिल बहुत दूर तक घूम आया मगर हमेशा पास में रहा तजुर्बे के सिवा और तो ना कुछ हासिल हिस्से रहें कोई कहानी ना बन सका जो मिला सबके किस्से रहे
कोरा कागज जैसा लिखना तो दूर छूआ भी नहीं जला सब कुछ कुछ इस तरह निकला धुआं भी नहीं जुवां की उठा पटक करने में कुछ अड़चन लगती है इतना खामोश रहा हूं कि बोलने का तजुर्बा भी नहीं