वो तेरी मेरी बात जब चली होगी
जाने कितनों की जान जली होगी
उस सुरमई शाम का क्या नज़ारा था
जो बस तेरी ही याद में ढली होगी
वो बज़्म में जब मैंने ग़ज़ल पढ़ी
तो सभी के दिलों में खलबली होगी
और हर फूल पर कहाँ भौंरा आता है
शाख ए गुलाब पर तितली मचली होगी
और देख हम तेरे शहर से हैं नावाक़िफ़
जहाँ कदम ले जाएं तेरी गली होगी-
ये रात बड़ी सुरमई सी है
कुछ नज़्म भी गा रही है।
चाँदनी फैली है चाँद की
मीठे ख़्वाब दिखा रही है।
तारे टिमटिमा रहे मोतियों से
जैसे चुन्नी मेरी लहरा रही है।
गा रहा मन तेरे ही सुरों को
तेरे ही गीत गुनगुना रही है।-
यह रात चांदनी से नहाई हुई
कुछ कुछ थी शरमाई हुई
तेरी आगोश के इंतज़ार में
तेरी राह में नज़रे बिछाई हुई
इश्क़ की चांदनी ओढ़ कर
वो खड़ी थी नज़र को झुकाई हुई
मेरे सब्र का था यह इम्तेहान
मेरे धड़कने भी थी घबराई हुई
इश्क़ का था यह वो पहर
जहां अख़्तर तूने भी किया सफ़र-
धरातल के नयन पटल में जस जस समग्र शाम सिमटती जाती है,
तस तस विपरीत दूर खड़ा अंबरारंभ सुरमई सा गहराता जाता है।।-
बहुत सुकून मिलता है मुझे तेरे मुश्क़ के दरमियां
और ये तन्हा रातें मेरी मधुरिम-सुरमई हो जाती हैं।।
जो भी तपती हुई तड़प होती है मेरी दिन भर की
तेरे सीने से लगते ही वो सब कहीं खो जाती हैं।।
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सुरमा लगा लेती है,
जब वो अपनी आँखों पे,,
शब को भी रश्क़ हो जाता है!
उन सुरमयी निगाहों से!!-
मैदान-ए-हुस्न में, वो यूँ निखर आती है...
शमशीर धार मांगती है, वो सुरमा चढ़ा आती है...-
Uski surmayii si aankhon me koi jaadu thaa...
Tabhi to shayad hamara hi Dil hmse bekaabu tha...🥃-
सुरमई सी उसकी आंखों में हम डूबना चाहते थे,
कुछ शब्द थे ऐसे जो उसकी ज़ुबा से सुनना चाहते थे।-
ನನ್ನ ನಿನ್ನ ಪ್ರೀತಿ ಎಂದು ಬಾಡದ
ಹೂ ಆಗಲಿ ಎಂದು ಬೇಡುವೆ (ಎರಡು ಸಾರಿ)
ನೀನೆ ನನ್ನ ಬಾಳು ಎಂದಿಗೂ
ನೀನೆ ನನ್ನ ಜೀವ ಎಂದಿಗೂ
ರಾ ರೀ ರಾ ರೋ ಓ ರಾ ರೀ ರೋ :ಪಲ್ಲವಿ
ಕನಸಲಿ ಬಂದು ನನ್ನ ಕಾಡುವೆ..
ಮನಸಲಿ ಎಂದು ನೀನೆ ಇರುವೆ..
ಈ ಬಾಳಲಿ ನೀನಿಲ್ಲದೆ ಬೇರೆನಿಲ್ಲ
ಮನಸದಿ ಹುರ್ಧಯದಿ ನೀನೆ..
ನೀನಿಲ್ಲದೆ ನಾ ಹೇಗಿರಲಿ.. :ಪಲ್ಲವಿ
ಮನಸಲಿ ಮನಸು ಬೆರೆತುಹೋಗಿವೆ..
ಈ ಜೀವಗಳನು ಕೂಡಿಸು ಧೇವರೆ..
ಇದೊಂದೆ ಕನಸು ಈ ಕನಸು ನನಸು ಆಗಲಿ..
ನಮ್ಮ ಆಸೆಯ ನೇರವೇರಿಸು..
ಸಾಕು ಬೇರೇನೂ ಬೇಡ ನಮಗೆ.. :ಪಲ್ಲವಿ-