मिजाज़ शोख हो या संजीदा
कातिलाना इश्क हो या रूहानियत
गज़ब के अशआर लिखकर
दीदार-ए-यार कराने में
हासिल है आपको महारत
वो हैं आप, बहुत अच्छे
सुख़नवर 'भारत'
या खुदा की है आपकी
कलम पर इनायत
Likes, followers के खेल की
करते नहीं आप तिजारत
हो जाए मुर्दों को भी 🙂
आपकी शायरी से मोहब्बत
वो हैं आप, बहुत अच्छे
सुख़नवर 'भारत'
लेखन में आपके शामिल है
फ़लसफ़ा-तराज़ी की सूरत
कागज़ पर स्याही से उड़ेल देते हो
अल्फाज़-ओ-एहसास-ए-दिल
बेहद खूबसूरत
सीखा हमने आपसे
उर्दू भाषा का ज्ञान निहायत
जुबां पे मानो रखा है आपकी
तिलिस्म-ए-हर्फ-ओ-हिकायत
वो हैं आप, बहुत अच्छे
सुख़नवर 'भारत'-
दरिया-ए-इश्क़ में डूबने वाले को कभी साहिल न मिला,
दर्द, अश्क़ तन्हाई मिली, मगर इश्क़ ये कामिल न मिला।
पढ़ता रहा जो आयत ओ तस्बीह, दर-ए-खुदा से बाहर,
उस बंदा-परवर से बढ़ कर, दूजा कोई काफ़िर न मिला।
जिक्र होता है सबके दर्द का, दिलजलों की इस बज़्म में,
तासीर जिसकी हो मरहम-सी, कभी वो ग़ालिब न मिला।
नापसंद है उसको शेरो-शायरी, ग़ज़ल, कशीदा-ए-हुस्न,
लिखा मियाज़े-इश्क़, सुखनवर उससे फाज़िल न मिला।
शुरू किया था सफर सहरा का, तलाश-ए-आब-ए-सुकूं,
भिगोता मेरी रूह को जो, सहरा में कोई साहिर न मिला।
हम भी हो जाते फ़ना नूर-ए-जहां हो, रस्म-ए-उल्फ़त में,
नुमाइशे-ताज पर वाह-वाह न करता वो आशिक न मिला।-
बन जाऊं हर अल्फ़ाज़ में तुम्हारी डायरी में,
कर भी अब ज़िक्र मेरा अपनी शायरी में.....!-
क़ल्ब को लज़ीज़ लगे फक़त ज़ायक़ा-ए-तहरीर तेरी,
ऐ सुख़नवर लिख दो न नई क़िताब-ए-तक़दीर मेरी!-
जिन्हें ज़रा भी नहीं है अश्आर की कीमत,
वो क्या लगाएँगे मिरे मेयार की कीमत।
बनाया मुझको सुख़नवर तेरी जुदाई ने,
मेरे लिए है बहुत हिज्र-ए-यार की कीमत।
जो ख़ुश हैं, जीत मिल गई उन्हें विरासत में,
कभी न जान पाएँगे वो हार की कीमत।
हमें ख़रीदा गया कौड़ियों के भाव यहाँ,
हमें पता है यहाँ सौ-हज़ार की कीमत।
है शह्र-ए-ज़िंदगी, ज़मीन यहाँ महँगी है,
है तेरी ज़िंदगी यहाँ मज़ार की कीमत।
यहाँ पे ज़ख़्म पर सभी नमक छिड़कते हैं,
यहाँ बहुत है मियाँ ग़मगुसार की कीमत।
वो जो इंसाफ़ के रहे हैं मुन्तज़िर बरसों,
कोई उनसे भी पूछे इंतज़ार की कीमत।
हज़ार आफ़तों से रोज़ बचाता है मगर,
ग़ुलों के बीच नहीं कोई ख़ार की कीमत।-
वक़्त सिखा देता है ज़िन्दगी जीने का हुनर,
मोहब्बत बनाती है खुशनुमा, ज़िस्त-ए-सफर।
दीवानगी की हद तक आशिक़ी करने का शऊर
सिखाता है सिर्फ़ एक दिलकश सुख़नवर !-
आज कल किताबें पढ़ना छोड़ दिया है मैंने।
क्या फ़ायदा इन बेजान पन्नों पर
लिखे हर्फ़ों को पढ़ के,
क्यों किसी और की आंखों से
ज़िंदगी से मुख़ातिब होऊँ।
क्यों किसी शायर के सलीके से
मुहब्बत से रूबरू होने की कोशिश करूँ।
क्यों किसी सुख़नवर का
ग़म उठाऊँ हिज्र में मैं।
किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं,
नहीं मानता मैं इसे।
दोस्ती के लिए तो गुफ़्तगू ज़रूरी है।
मगर किताबें,
किताबें बस बोलती जाती हैं अपनी ही,
मेरी बिल्कुल नहीं सुनतीं।
इसलिए किताबों से मेरा राब्ता अब नहीं रहा।
पढ़ने लगा हूँ अब मैं इंसानों को।
जीते-जागते, दौड़ते-भागते,
कभी सुकून पसंद, कभी थक के हाँफ़ते,
दर्द से सराबोर तो ख़ुशियों से घिरे हुए,
नफ़रत से सने या मुहब्बत में पड़े हुए,
हँसते-रोते, हालात पर बिलखते,
मस्ती में झूमते इंसानों को पढ़ने लगा हूँ।
किताबें पढ़ना छोड़ दिया है मैंने।
जब से इंसानों को पढ़ने की लत लग गई है मुझे।-
ज़िन्दगी को मेरी साँसों से मिलाया मैंने,
अपने कुछ दोस्तों को माँ से मिलाया मैंने।
ताक में रख दी अपनी सारी ख़ुशी, ख़्वाब सभी,
हर मरासिम कुछ इस कदर से निभाया मैंने।
फ़ोटो रहती है वालदेन की ही बटुए में,
हर ज़ख़म उनको देखकर ही भुलाया मैंने।
बस यही सोच कर के दुखता रहता है ये दिल,
कितने लोगों के दिल को हाय दुखाया मैंने।
सबब-ए-दर्द जो पूछा था चाराग़र ने तो,
उसे धीमे से तेरा नाम बताया मैंने।
वो रहे इस भरम में मैं हूँ सुख़नवर कोई,
जिन्हें ग़ज़लों के ज़रिए दर्द सुनाया मैंने।-
पहरेदार है जिस्म पर एहसास की जंजीर मेरी..।
वर्के-दिल खोल के पढ़लो जरा तहरीर मेरी..।💕-