यादों को शायद न ही निकाल पाओ,
अपने आँसुओं को न ही लिख पाओ,
लेकिन फिर भी अच्छा ही तो होगा,
इस रिश्ते से विश्वास तो नही उठेगा।
तुम चाहे मैं ही रह गये, हम नही हो,
फिर भी हम बन कर के ही लिखो,
ये दर्द ज़ाहिर न ही हो, तो अच्छा होगा,
इस रिश्ते से विश्वास तो नही उठेगा।
अगर तुम सोचो तुम ही केवल दुखी हो,
मग़र जहाँ में सब समझें तुम सुखी हो,
मुस्कुराते ही तुम मिलो तो अच्छा होगा,
इस रिश्ते से विश्वास तो नही उठेगा।
तुमने प्यार में धोखा खाया समझते हो,
दुख तो और भी हैं, नही समझते हो,
दूसरों का दुख समझो तो अच्छा होगा,
शायद हर रिश्ते से विश्वास उठ जायेगा।
दुनिया हो गई है आज स्वार्थी समझो,
नहीं हो सकता कि हर कोई सुखी हो,
दूसरों के दर्द को अपनाओ, अच्छा होगा,
किसी रिश्ते से विश्वास तो नही उठेगा।
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