तन्हा तो नहीं हूँ मैं पर एक अकेलापन हरदम साथ में रहता है।
मेरी कोई ग़लती नहीं फिर भी आत्मग्लानि का दरिया बहता है।
कोई नहीं है साथ में मेरे, पर "कोई है मेरा" मुझे ऐसा लगता हैं।
बेहतर ही हो रहा है हर पल सब कुछ मुझमें मेरा दिल कहता है।
दिल की गहराई में जाकर अक्सर मेरा रोम-रोम झाँका करता है।
मुझे कोई नहीं चाहिए, मन मेरा ख़ुद से ही बात किया करता है।
दुनिया गलती करती हैं, "अभि" इल्ज़ाम ख़ुद पर लिया करता है।
चुप चाप रहता है ये मुसाफ़िर, बस ख़ुद से बातें किया करता है।
लगता हैं सोना बनना है तुझको "अभि" तेरा हरेक कण जलता है।
पता नहीं क्या आग है तेरे कण-कण में, तेरी आभा में, चमकता है।
मुझको तो ऐसा लगता हैं कि तुझे बहुत ही ज़्यादा आगे जाना है।
दिन भर तो चालू रहता ही है, रात भर भी तू चलता ही रहता है।
तूझे समझ नहीं सही ग़लत की "अभि" तू बस दिल की सुनता है।
सही कहने की गलती तू करें, आत्मग्लानी में तेरा मन जलता है।
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