जब लाखो ठोकरें, क़िस्मत के नाम हो गयी
तब जा कर लौ बदले की, सरेआम हो गयी
मशरूफ़ थी झंझा की, उन तीव्र घटाओं से
फिर भी किस्मत के आगे, बदनाम हो गयी
हज़ारों लाखो कोशिशे की उठ खड़े होने की
जर्जर किस्मत के आगे,सब नाकाम हो गयी
निराशा से भर गयी, वो नब्जें आशाओं की
जो तकदीर के आगे मेहनत विराम हो गयी
विघात हुई वासना की, वो पोटली इस कदर
निस्तब्धता में भी जोरों का,कोहराम हो गयी
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