मन कितनी व्यथा सहता है,
करवटें बदलता रहता है तन,
वो नींद जो ख्वाबों से जुड़ी थी,
अब जीवन में है कितनी कम।
एक ही जमीं हम सभी की,
अपना स्थान ढूंढते रहते हम,
चाँद की रौशनी है सभी की,
उसे भी अपना समझते हैं हम।
एक ही छत के नीचे हम सब,
अपने संघर्ष को अकेले जीते हैं,
अपनी भूख की प्यास के अंजाम को,
भागमभाग के दौड़ में जी रहे हम।
जीवन के पथ पर चलते हुए,
अपने सपनों से नित्य जूझते हम,
चुनौतियों का मुकाबला करते हुए,
अधुरे या चंद लक्ष्य प्राप्त करते हम।
-