Dr. Shailendra singh   (शैल)
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Joined 27 October 2019


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Joined 27 October 2019

मेरा शहर अपना वजूद खो रहा है,
लोगों की ख़्वाहिशों में तासीर खो रहा है।
खो रही इसकी बेशुमार हरियाली,
खो रही इसकी हवा की शीतलता।

तरक्की की भीड़ में पहचान खो रहा,
शोर-गुल में चिड़ियों की चहचहाहट खो रहा।
अब यहाँ भी उमस है, धूल का है खेल,
हर कोना जैसे बयां कर रहा कलयुगी झमेल।

कभी जो बाग़ों की छाँव में सुकून था,
अब कंक्रीट की दीवारों में वो जज़्बात नहीं रहा।
जो शहर कभी दिल से मुस्कराता था,
वहाँ हर चेहरा थका-थका सा नज़र आता है।

हर गली, हर नुक्कड़ कुछ कहता है,
कि ये शहर अब थक गया है, पर बहता है।
आधुनिकता की दौड़ में जो कुछ मिला,
वो शायद इस शहर का अपनापन ही था।

मिट्टी की खुशबू अब किताबों में बंद है,
बरसों की रौनक अब पर्दों में बंद है।
पेड़ों की जगह अब टावर उगे हैं,
बच्चों के खेल अब स्क्रीन पर सजे हैं।

गुम हो गई वो रंग-बिरंगी रौनकें,
जो तीज-त्योहारों में मिलती थीं आँखों से आँखें।
अब रिश्ते व्हाट्सएप पे 'Emoji' बन गए,
गले मिलने की जगह स्टेटस के 'seen' बन गए।

साथ बैठकर खाने का वो स्वाद नहीं,
अब तो तस्वीरों में ही वो रौनक कैद कहीं।
ना छतों पर पतंगें, ना गलियों में होली,
बचपन में ही हमने ख्वाहिशों की मिलावट घोली।

नज़दीकियों का अब मतलब बाकी नहीं,
दरवाज़े खुले रहते थे जहां, अब दिलों के ताले हैं।
पड़ोसी भी अब अजनबी से लगते हैं,
यहां इंसानियत के मायने भी धुंधले से लगते हैं।

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YESTERDAY AT 7:11

समय भाग रहा, उस चक्र को समझना है,
कल के बोझ को मन से बाहर करना है।
चकाचौंध इस भीड़ के क्रम को छोड़ना है,
सही-ग़लत के तौल में ख़ुद को तौलना है।

हर ओर शोर है, पर भीतर सन्नाटा गूंजता,
भीतर की आवाज़ को अब पहचानना है।
जो दिखता है, वो सच हो ये ज़रूरी नहीं,
पर जो महसूस हो, उस पर चलना है।

हर मुस्कुराहट के पीछे भी एक सवाल है,
हर सफलता के पीछे कुछ मलाल है।
इन नक़ाबों के शहर में जब तक जीना है,
चेहरे को आईना बनाना और साफ़ रहना है।

कल की फिक्र में आज को मत गँवाना,
हर लम्हे को सच की तरह अपनाना।
जो है पास, वो अनमोल खजाना है,
ख़ुद के गिरेबां को खुद साफ रखना है।

बहुत कुछ स्याह हो चुका पन्नो में,
हमें अब उसे जीवन में साकार करना है।
सोने की चिड़िया बन नहीं पिंजरे मे रहना,
खुद को आजाद कर उन्मुक्त गगन में उड़ना है।

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18 JUN AT 21:49

इन आँखों में ठहराव है,
इन्हें देख ठहरा जीवन है।
कितना सुकून है इनमें,
इनमें बसता मेरा कल है।

इनमें ना कोई शोर है,
ना अधूरी तलाश है।
एक खामोश सा वादा है,
जो मेरी धड़कन के पास है।

तेरी आँखों की नमी को,
मैंने खुद में पाया है।
हर ख्वाब, हर बात में,
तेरा ही चेहरा समाया है।

इन पलकों की छाँव में,
छुपा है मेरा आसमाँ।
तेरे हर इक नज़र में,
जग सारा लगे मेरा जहाँ।

इन आँखों में जो ठहर गया,
वो इश्क़ मेरा सच्चा है।
हर पल इनसे जुड़े रहूं,
बस इतना सा सपना है…

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18 JUN AT 7:25

हर हर शंभू… जय महादेव...
हर हर भोले, नमः शिवाय,
जय शंकर, शंभू नमः रुद्राय।
हर हर महादेव की जय हो,
त्रिकाल स्वामी त्रिपुरारि की जय हो॥

गंगाधर तुम, शांत स्वरूप,
त्रिशूलधारी, संहार अनूप।
नंदी के संग तुम्हारा धाम,
भक्ति से पावन होता है नाम।
नीलकंठ जो विष पीकर मुस्काए,
दुखियों के सब कष्ट हर जाए॥
हर हर भोले, नमः शिवाय,
जय शंकर, शंभू नमः रुद्राय॥

कैलास निवासी, ध्यान के राजा,
भस्म लिपटे योग विराजा।
शिव तांडव से जग कांपे,
तेरे नाम से भवसागर तरे।
भक्तों का तू एक ही सहारा,
तेरे चरणों में बस है किनारा॥
हर हर भोले, नमः शिवाय,
जय शंकर, शंभू नमः रुद्राय॥

हे कैलाशा, हे बद्री विशाला,
हे रूद्र, हे पशुपतिनाथ।
हे रामेश्वरा, हे मृत्युंजय,
हे विषधर, हे चंद्रशेखर।
हे त्रिलोकेश, हे महाकाल,
हे अघोरेश्वर, करुणा की ढाल।
हे नीलकंठ, हे कपालीनाथ,
हे शूलपाणि, हे विश्वनाथ।
हे जटाधर, हे अर्धनारीश्वर,
हे भीषण, हे शांत स्वरूपधर।
हे सुरेश्वर, हे देवों के देव,
हे अजर अमर, हे सदा अमेय।
हे भवभयहारी, हे संकटमोचन,
हे त्रिपुरांतक, हे धर्म संरक्षक।
हे शिवशंभू, दीनों के नाथ,
कृपा करो प्रभु, हमरे साथ॥

हर हर भोले, नमः शिवाय,
शिव दयालु, हे करुणा निधि।
शरण तुम्हारी, तुम जीवन आधार,
कर दो हम पर कृपा अपार॥
हर हर भोले, नमः शिवाय,
जय शंकर, शंभू नमः रुद्राय॥

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17 JUN AT 7:33

भज श्रीकृष्ण भज गोपाल...
भज ले मन तू नंदलाल....
भज यदुनंदन भज नारायण...
भज मधुसूदन भज देवकीनंदन....
भज कृष्ण मुरारी यशोदा नंदन...
भज जनार्दन भज गिरिधर मन...
भज बांकेबिहारी भज बनवारी...
भज त्रिपुरारी भज चक्रधर को मन..
भज श्रीकृष्ण भज गोपाल रे मन।

आप सबके स्वामी हैं प्रभु,
आप हम पर भी दया करना।
हे नंदलाल, हे कृष्ण मुरारी प्रभु,
हमको भी अपनी शरण में लेना॥
हे बंशीधर हे गोपाल,
राधा के मनभावन लाल।
कान्हा तेरी बंसी की तान,
बांध लेती है हर एक प्राण॥
हम हैं भटके हुए मुसाफिर,
हमें तू राह दिखा देना॥

कालिया मर्दन करने वाले,
भक्तों के कष्ट हरने वाले।
हर युग में तू आया सावरने,
अब इस युग में भी आ जाना॥
जीवन नैया बीच भंवर है,
कृपा से इसे पार करा देना॥
तेरी लीला अनंत अपार,
तेरा नाम ही है जीवन आधार।
जो तुझको मन से याद करे,
उसका तू बन जाए उद्धार॥
बस इतनी विनती है हमरी,
हमें तू अपनी रज से देना उद्धार।।

आप सबके स्वामी हैं प्रभु,
आप हम पर भी दया करना।
हे नंदलाल, हे कृष्ण मुरारी प्रभु,
हमको भी अपनी शरण में लेना॥

भज श्रीकृष्ण भज गोपाल...
भज नंदलाल भज त्रिपुरारी मन,
भज श्रीकृष्ण भज गोपाल रे मन।

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16 JUN AT 21:39

हमारे दरमियां अब भी कुछ बाकी है,
गुजरे कल की यादें अब भी बाकी हैं।

तेरी बातों की गूंज अब भी दिल में है,
तेरे होने की खुशबू अब भी हवा में बाकी है।

छू के गुज़रता है हर लम्हा तेरा एहसास,
टूटे रिश्तों में भी जुड़ने की कोई आस बाकी है।

खामोश लब मगर कह देते हैं सब,
दिल के कोनों में तेरा नाम अब भी दर्ज है।

कभी जो अधूरा था, वो ख्वाब अब भी है,
हमारे दरमियां एक जवाब अब भी बाकी है।

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16 JUN AT 9:48

किरदार के वफादार हो रहे लोग,
मुस्कुरा कर कितना कुछ सह रहे लोग।
जमाने की ठोकरें भी झेल लेते हैं,
फिर भी सच्चाई बयाँनहीं करते लोग।

भीतर टूट कर भी खामोश रहते हैं,
दर्द भी छुपाने का हुनर रखते हैं लोग।
चेहरे पर मुस्कान, आँखों में तूफान,
किस तरह खुद को संभाल रहे लोग।

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15 JUN AT 7:02

कल का किसी को पता नहीं, फिर भी घमंड में खोए हैं,
छोटे-से नाम और ओहदे में, जाने क्या बन रहे हम।

रुतबा, शोहरत, दौलत लेकर, खुद को खुदा समझ बैठे,
आईना तक हमसे शरमाए, इतने अजनबी हो गए हम।

खाली हाथ आए थे सब, खाली ही लौटेंगे एक दिन,
फिर भी हर मोड़ पर देखो, मोह और माया बोए हम।

साथ तो कुछ भी ना जाएगा, कल किरदार भी बदलेगा,
जोड़-तोड़ की होड़ में, यह सत्य ना समझ पाए हम।

पता सबको है यह सफर नहीं सरल, मंज़िल मुक्तिबोध है,
फिर भी भ्रांतियों को संग ले, बोझ नित्य बढ़ा रहे हम।

हर रिश्ता कुछ कहता है, हर चेहरा एक कहानी है,
पर खुद को कुछ बनाने में, सबसे दूर हो गए हम।

सच की राहें तंग सही, पर मंज़िल वहीं मिलती है,
झूठ की राह पकड़कर, कितना यहां भटके हम।

रोज़ ग़लतफ़हमियों की चादर ओढ़े चलते रहते हैं,
खुशियों की तलाश में दुख के सौदे कर रहे हैं हम।

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14 JUN AT 4:29

कुछ खोने की कसौटी पे जब हौंसला खरा होता है,
ख़्वाबों की लौ में तप कर नया उजाला पनपता है।

मतलबी ज़माने की आँधियों में भी, जो आगे बढ़ता है,
छल-कपट की ओट से निकल कर, संघर्ष से निखरता है।

हार के धुंधले साये, जब मन को तंग कर लेते हैं,
नए जज़्बों को संग ले कर, हौसला आगे बढ़ाता है।

गिरकर जो संभलते हैं, वही मंज़िल तक पहुँचते हैं,
इरादों की उड़ान तुफान से टकरा, मुकाम हासिल करती हैं।

हर रात के बाद सवेरा है, कांटों संग भी फूल खिलते हैं,
मेहनत के मोती जो संजो सके, वही सफल होते हैं।

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13 JUN AT 6:02

फिर एक हादसा झकझोर गया,
कल अनिश्चित है ये बता गया।
एक पल में बुझ गई उम्मीदें फिर,
एक पल में वजूद माटी में मिल गया।

धुआँ-धुआँ कर के मिटी जिंदगियां,
ज़र्रे भी रोए, फूटे अश्रु फव्वारे।
क्या खोया, क्या पाया से परे जिंदगी,
पानी के बुदबुदे सा है अस्तित्व।

कल क्या हो, है किसको पता,
खुल कर आज को जी ले ज़रा।
बस लम्हे में सिमटता है जीवन,
छोड़ फ़िक्र उस अनजाने कल की।

बांट ले खुशियां झोली की सबसे,
भेद ना कर जाने अंजाने का।
सबमें बसी है पलछिन जिंदगी,
जिंदगी को जिंदगी के काम आने दे।

आएगा फिर उजाला उस साये से परे,
हौसलों का दीप फिर जगमगाएगा।
जो पल खोया, लौट न पाएगा,
इसलिए आज जी ले बेहिसाब रे!

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