Dr. Shailendra singh   (शैल)
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Joined 27 October 2019


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Joined 27 October 2019

छोटे छोटे लक्ष्य रखो,
करो उन्हें पाने का प्रयास।
हर कदम पर सीख लो कुछ,
सपनों को दो सच्चा विश्वास।

धीरे-धीरे मंज़िल मिलती,
धैर्य बनाओ जीवन का श्रृंगार।
हार मिले तो भी मत रुकना,
हार ही सिखाए जीत का सार।

पसीना ही मोती बनता है,
मेहनत ही भाग्य को गढ़ती है।
जो ठान ले मन से कुछ करना,
दुनिया उसकी राह गढ़ती है।

छोटे छोटे लक्ष्य रखो,
बनाओ जीवन को महान।
नियत साफ़, कर्म निरंतर,
यही है सफलता का गान।

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YESTERDAY AT 8:00

सांसों की माला दिल की धड़कन भरी,
मुस्कुराती सुबह की लालिमा मुबारक।
हर धुंध छँट गई, हर दिशा गुनगुना रही,
नव किरण का ये पावन दिन मुबारक।

पंछी के स्वर में उम्मीद का गान है,
फूलों की महक में जीवन का मान है।
क्षणभंगुर श्वास में अनन्त की झलक,
हर पल में सृजन का वरदान मुबारक।

जहाँ अंधकार स्वयं से हार जाता,
चेतना का दीप वहीं उजास लाता।
आशा की लहरें संग ले चली हमें,
हर नए कदम का उत्साह मुबारक।

चलो मिलाएँ हाथ, बढ़ाएँ डगर,
बनाएँ भविष्य का उज्ज्वल शहर।
जहाँ हर चेहरा मुस्कान से खिले,
ऐसे सच्चे दिल के उद्गार मुबारक।

जीवन का यह स्वरूप मुबारक,
फिर उदय होती रुपहली भोर मुबारक।
हर मन में उपजे करुणा का सागर,
मानवता का यह प्रकाश मुबारक।

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21 AUG AT 8:18

वो बंदर को नचाता मदारी,
बचपन में भगवान सा लगता था।
आज देखता हूँ, हर चौक, हर मंच पर,
हर कोई मदारी के नचाए नाचता है।

राजनीति की डुगडुगी,
मीडिया का जादुई हाथ,
भीड़ ताली बजाती है,
सच-झूठ सब पर परदा डलता है।

बचपन में जिसे खेल समझा,
अब जान गया, यही व्यवस्था है।
हम सब मदारी की बीन पर थिरकते,
और समझते हैं, ये हमारी ही इच्छा है।

कलयुगी भीड़ में भगवान बने कई,
वो सत्ता और बाज़ार के मुखौटे पहने है।
कभी नेता, कभी व्यापारी, कभी मालिक, कभी उपदेशक बन,
हमें नचाते है-और हम समझते हैं,यही हमारी नियति है।

पर शायद सच्चाई को कहां समझे कोई,
मदारी बाहर नहीं, भीतर भी बैठा है।
जिस दिन हम डोरियाँ काटना सीखेंगे,
वही दिन होगा, असली मदारी को समझ, परम मुक्ति का।

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20 AUG AT 6:43

ये जीवन की डगर, बदलती पलछिन में,
कभी हाथ हैं भरे हुए, कभी गुमनाम है सफ़र।

साँसों के ताने-बाने हैं, सुख-दुख के तराने हैं,
दुःख की हल्की सलवटें, सुख के कुछ अफ़साने हैं।
क्यों सोचें आगे क्या होगा, किसे मिला ठिकाना है,
ऊपर बैठा बाज़ीगर, उसने ही खेल दिखाना है।

छोड़ भरोसा उस पर कर लो, जिसने जीवन सजाया है,
नाम जपो प्रभु का हर क्षण, जिसने जग में पहुँचाया है।

जितना भी जतन करो तुम, भरना दामन तारों से,
झोली में तेरे वही उतरें, जो लिखा हैं तेरे हिस्से में।
कर्म की राह पे चलते जाओ, और कुछ भी न करना है,
उसके ही हाथ में सब कुछ, फल तो उसी ने देना है।

छोड़ भरोसा उस पर कर लो, जिसने जीवन सजाया है,
नाम जपो प्रभु का हर क्षण, जिसने जग में पहुँचाया है।

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19 AUG AT 6:59

भलाई और उदारता अब लुप्त हो चली है,
मतलबी हवाओं में नेक नीयत खो चली है।
दिखावे की होड़ है, महान बनने की चाह है,
इंसानियत की राहें अब विलुप्त हो रही हैं।

चेहरों पर मुस्कान है, दिलों में परछाइयाँ हैं,
मीठी बातों के पीछे छुपी कितनी लड़ाइयाँ हैं।
धन की खातिर जी रहे, संस्कार भूल रहें सब हैं,
स्वार्थ की अंधेरों में लुप्त हो रही इंसानियत है।

कहाँ गई वो नीयत जो सच्चाई को सजाती थी?
कहाँ गई वो भाषा जो दिलों को मिलाती थी?
अब तो बस रह गया है सिर्फ अपना ही बखान है,
मानवता तड़प रही है, कहाँ खो गया इंसान है?

उजियारा फिर फैलेगा अगर उम्मीद का दीप जलाएँगे,
भटके हुए कदमों को मिलकर हम सही राह पे ले जाएंगे।
नेकी का कदम बढ़ा कर, दूसरे का सहारा हम बनेंगे,
इंसानियत की बगिया फलेगी फूलेगी, जो हम बागबाँ बन जाएगें।

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18 AUG AT 5:58

दूसरों की कही बातों पर यकीं बदलता है बहुत,
उनकी समझ से वहम में ढलता है बहुत कुछ।

वहम की जद में आ बहुत कुछ बदल जाता है,
अपनों में गैर और गैर में अपना नज़र आता है।

सच्चाई पर अक्सर परछाइयाँ हावी हो जाती हैं,
दिल पर भी अजब शक की परत छा जाती है।

फिर क्या अपनो का चेहरा भी अजनबी लगता है,
साध चलना मुश्किल, हर कदम फिर डगमगाता है।

जहाँ विश्वास था, वहाँ दरारें नज़र आने लगती हैं,
विश्वास की जगह पर सवाल कई सजने लगते हैं।

वहम की दीवारें जितनी ऊँची होती जाती हैं,
उतनी ही सच्चाइयाँ भीतर दबती चली जाती हैं।

जो दिल साहस करे, यक़ीन को फिर से थाम ले,
तो सुनी को परखे और एक नई शुरुआत करे।

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17 AUG AT 8:41

क्या गजब भागदौड़ है, कैसी यह सोच है,
नया घर बसाने को पुराना उजाड़ते लोग हैं।
नया शहर, नई दिशा, नए रिश्ते, नया कितना कुछ,
पर अपनो को अपने से दूर कर रहे लोग हैं।

यादों की ईंटों पर धूल चढ़ने देते हैं,
ममता के आँगन को सूना कर देते हैं।
पेड़ की छाँव, कुएँ की ठंडी पुकार,
बाजार की चमक में खोते संस्कार।

जिन दहलीज़ों पर कभी दीप जले थे,
आज वहाँ लोहे और काँच के महल खड़े हैं।
नदी की धारा, खेतों की सांसें,
कंक्रीट की परतों में कैद हो चली हैं।

कहते हैं प्रगति है, नई दिशा है,
पर मन पूछता है - क्या यह सही सपना है?
यदि घर केवल दीवारों और खिड़कियों का नाम है,
तो रिश्तों और जड़ों का क्या अंजाम है?

कभी ठहर कर सोचना,
क्या खो रहे हो, क्या पा रहे हो।
नया बनाने की इस दौड़ में,
अपने ही अतीत को ही मिटा रहे हो।

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16 AUG AT 9:02

मेरे द्वार के दिन सँवर जाएंगे,
मेरे घर पर कान्हा आएंगे ॥

नंदलाल की महिमा अपरम्पार
कृपासिंधु करें कल्याण॥
चलो कान्हा का जन्मोत्सव मनाएँ,
हरे राधा हरे कृष्ण गाएँ॥

हे कृष्ण गिरिधर हरे मुरारी,
शरण तुम्हारी हे बनवारी॥
हरे राधा हरे श्यामा बोलो,
मधुसुदन नन्दलाला की जय बोलो॥

मेरे द्वार के दिन सँवर जाएंगे,
मेरे घर पर कान्हा आएंगे ॥

गोपी ग्वाल बन नृत्य करेंगे,
माखन चोर की लीला कहेंगे॥
मुरलीधर मनोहर सबके रक्षक,
नाम जपे सो, भवसागर तरेंगे।।

मेरे द्वार के दिन सँवर जाएंगे,
मेरे घर पर कान्हा आएंगे ॥

श्यामसुंदर की छवि मन को भाए,
पाप कटे सब सुख घर आए ॥
हे जगन्नाथ, गोविंद गोपाला,
कृपा करो हे पार्थसारथी प्यारे॥

हे कृष्ण गिरिधर हरे मुरारी,
शरण तुम्हारी हे बनवारी॥
हरे राधा हरे श्यामा बोलो,
मधुसुदन नन्दलाला की जय बोलो॥

मेरे द्वार के दिन सँवर जाएंगे,
मेरे घर पर कान्हा आएंगे ॥

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15 AUG AT 7:49

उठो देशवासियों, गौरव का दिन आया है,
जश्न की सुबह ले, सूरज उजाला लाया है।
हर तरफ हर्ष है और देशभक्ति की गूंज है,
आज़ादी का जश्न मनाता तिरंगा लहराया है।

मेरा शान तिरंगा, मेरा मान तिरंगा,
देशभक्ति का गौरव, अभिमान तिरंगा।
शहीदों के बलिदान का सम्मान तिरंगा,
देशभक्ति की आन, बान और शान तिरंगा।

वीरों की गाथाएँ गगन में गूंजी है,
उनकी वीरता से धरती महकी है।
उनके सपने को मिलकर जीयें हम,
मां भारती का सम्मान बढ़ाए हम।

माँ भारती की पूजा, यही हो हमारा धर्म,
एकता, प्रेम, सेवा यही हो हमारा कर्म।
आओ हाथ मिलाएँ, जग में मिसाल बनाएँ,
भारत का परचम हर दिशा में फहराएँ।

मेरा शान तिरंगा, मेरा मान तिरंगा,
देशभक्ति का गौरव, अभिमान तिरंगा।

भारत के सपनों को, हम साकार करेंगे,
ज्ञान और विकास से, देश को संवारेंगे हम।
जय-जयकार गूँजे, हर गली हर गाँव में,
तिरंगा लहराए, अब आजादी की शान में।

मेरा शान तिरंगा, मेरा मान तिरंगा...

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14 AUG AT 6:50

Break not the tender thread of love,
for it is spun of more than fiber
it is the silent vow
two souls weave in stillness.

Once torn,
you may twine it with patient hands,
bathe it in tears,
anoint it with the oil of years,
yet the knot will murmur,
with every touch -Something was lost.

Love’s beauty lies in its unbroken stream,
where trust flows like a river,
and memories, like steadfast stones,
give the waters their course.

In an age where bonds
change with a touch of glass,
remember, machines may join the sundered,
but no hand can unmake the knot.

Guard it, keep it soft
for the thread that endures unbroken
is no mere tether,
but the very ornament of life...

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