//Waiting//
She sits
beside The
mirror, the lake
And places a bindi,
A glowing full moon
Between her thick
black brows,
(Full poem in the caption)-
सोलह श्रृंगार की मुझे आवश्कता ही नहीं,
बस उसका दिया झुमका डाल कर,
अपने कानों विच मैं सबसे चोखी लगनी हूँ !!-
तेरे दीदार से ही चेहरे पे यह नूर है।
तेरे प्यार बिन कहां पूरा मेरा साजो श्रृंगार है।-
खबर जो,
उसके आने की,
मैं पाऊं !
ले कर,
श्रृंगारदानी मैं,
अपनी !
ख़ुद के,
श्रृंगार में ही,
लग जाऊं !
सजाऊँ मैं,
खुद को इतना,
उसके लिए !
कि उसे,
उसकी दुल्हन सी,
नजर आऊँ !!-
रात,
विवाह के,
जब मैं दुल्हन बनूँगी !
साथ,
गहनों के,
श्रृंगार भी फीका पड़ेगा !
देख,
कर आपको,
सामने ठाकुर साहब !
जब ये,
मेरा चेहरा,
फूलों सा खिलेगा !!-
निर्झर बहते नैन मेरे
प्रेम के ये श्रृंगार है।
अब के बरस सावन–भादों
मेरे नैनों के नाम है।-
ये चूड़ा,
औऱ ये पाज़ेब,
लाल मेहंदी,
औऱ ये जोड़ा लाल,
बिन तुम्हारे पिया जी,
ये सोलह श्रृंगार भी,
है फ़ीके यार !!-
आँखे मध्यम कत्थई कत्थई, चेहरा चंद्रकमल सा है,
चलता फिरता वो धरती पर, ज़िंदा ताजमहल सा है.
पूरा गीत अनुशीर्षक में पढ़िए 🙏😍-
यहां हम सब कुछ
हार कर बैठें है ,
उनके झुमके और एक
काली बिंदी की अदा पर ..।।-
🥀सीमाएं जहां स्वयं ही
असीमित हो उठती हैं
चिर-प्यास मंत्र है जीवन
संतोष-भ्रम ये कहती हैं
उन लोचन की वो उलझन
जब प्रेम-प्रथम वो मिलते
रस-पान दृगों से करते
शृंगार-सिद्ध यूं कहते🥀
अनुशीर्षक...-